गुरुवार, 24 दिसंबर 2009

छिनाय गयो हमरो ही नाम ,

आजु तो न्योति के बिठाई रे कन्या
हलवा पूरी औ'पान
सोई बिटेवा ,परायी अमानत ,
चैन गा सब का पलान !
*
कल ही लगाय के हल्दी पठइ हौ
मिलिगा , सो ओहिका भाग
आपुन निचिन्त हनाय लीन गंगा
बियाह दई, इहै बड़ काज !
*
एकइ दिन माँ बदल गई दुनिया
छिन गयो माय का दुलार
बियाह गयी कन्या ,
समापत भा बचपन
मूड़े पे धरि गा पहार !
*
सातहि फेरन पलट गई काया
गुमाय गई आपुन पहचान !
बिछुआ महावर तो पाँयन की बेड़ी
सेंदुर ने छीन्यो गुमान !
हमका का चाहित हमहुँ नहिं जानै ,
को जानी , हम ही हिरान !
*
आँगन में गलियन में ,
बिछड़ी सहिलियन में,
हिराइगा लड़कपन हमार
छूट गयो मइका ,
लुपत भइली कनिया,
बंद हुइगे सिगरे दुआर !
ऐही दिवारन में
उढ़के किवारन में सिमटि गो हमरो जहान !
*
रहि गई रसुइया ,
बिछौना की चादर ,
भीगी फलरियाँ औ'रातन को जागर !
अलान की पतोहिया ,
फलान की मेहरिया ,
ढिकान की मतइया ,
बची बस इहै पहिचान !
मर मर के पीढ़ी चलावन को जिम्मा .
हम पाये का का इनाम ?
छिनाय गयो हमरो ही नाम ,
मिटाय गई सारी पहचान .
*