गुरुवार, 6 जनवरी 2011

गंगिया री, अति दूर समुन्दर

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नैहर की सुधि आई, हो गंगिया नैहर की सुधि आई !
बिछुड़ गईं सब बारी भोरी !
संग सहिलियां आपुन जोरी
ऊँचे परवत जनमी काहे नीचे बहि आई !
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उछल-बिछल, बल खाइत ,विरमत खेलत आँख-मिचौली
वन घाटिन में दुकि इठलाइत ,खिलि-खिल संग सहेली
नीर भरी छल-छल छलकाइत,
पल-पल मुड़ि-मुड़ि देखति .
बियाकुल लहर हिलोरत पल पल कइसन समुझाई !
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परवत पितु की गोद ,हिमानी आँचल केरी छाया ,
इहाँ तपत तल ,बहत निमन मन सहत,छीन भई काया .
सिकता सेज ,अगम पथ आगिल,
नगर-गाम वन अनगिन ,
गंगिया री अति दूर समुन्दर कइसन सहि पाई !
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