tag:blogger.com,1999:blog-14753474280450943572024-02-20T04:25:23.738-08:00लोक-रंगप्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger42125tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-12715377858444582322011-01-06T22:31:00.000-08:002013-04-02T16:34:59.403-07:00गंगिया री, अति दूर समुन्दर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
*<br />
नैहर की सुधि आई, हो गंगिया नैहर की सुधि आई !<br />
बिछुड़ गईं सब बारी भोरी ! <br />
संग सहिलियां आपुन जोरी <br />
ऊँचे परवत जनमी काहे नीचे बहि आई !<br />
*<br />
उछल-बिछल, बल खाइत ,विरमत खेलत आँख-मिचौली<br />
वन घाटिन में दुकि इठलाइत ,खिलि-खिल संग सहेली <br />
नीर भरी छल-छल छलकाइत,<br />
पल-पल मुड़ि-मुड़ि देखति .<br />
बियाकुल लहर हिलोरत पल पल कइसन समुझाई !<br />
*<br />
परवत पितु की गोद ,हिमानी आँचल केरी छाया ,<br />
इहाँ तपत तल ,बहत निमन मन सहत,छीन भई काया .<br />
सिकता सेज ,अगम पथ आगिल, <br />
नगर-गाम वन अनगिन ,<br />
गंगिया री अति दूर समुन्दर कइसन सहि पाई !<br />
*</div>
प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-5133043426378594232010-12-16T08:29:00.000-08:002010-12-23T12:22:52.059-08:00बाउल गीत*<br />
तेरे रंग डूबी, मैं तो मैं ना रही !<br />
*<br />
एक तेरा नाम ,और सारे नाम झूठे,<br />
ना रही परवाह जग रूठे तो रूठे <br />
सुख ना चाहूँ तो से ,ना रे, ना रे ना, नहीं !<br />
*<br />
एक तु ही जाने और जाने न कोई,<br />
जाने कौन अँखियाँ जो छिप-छिप रोईं <br />
एक तू ही को तो , मन और का चही !<br />
*<br />
बीते जुग सूरत भुलाय गई रे ,<br />
तेरी अनुहार मैं ही पाय गई रे .<br />
पल-छिन मैं तेरे ही ध्यान में बही !<br />
*<br />
एक खुशी पाई तोसे पिरीतिया गहन ,<br />
तू ना मिला, मिटी कहाँ जी की जरन ,<br />
तेरे बिन जनम, बिन अगन मैं दही !<br />
*<br />
कि मैं झूठी, कि ये वचन झूठा ,<br />
जा पे सनेह सच, मिले सही क्या .<br />
रीत नहीं जानूँ, बस जानूँ जो कही !<br />
*प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-43074362915015460742010-11-21T11:38:00.000-08:002013-05-15T21:16:12.242-07:00बहिनी का भाग.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
* <br />
तेरी कमाई में ओ,मेरे भइया कुछ तो है बहिनी का भाग ,<br />
इक नया पैसा हजार रुपैया में ,बस इतना कर दे निभाव , <br />
*<br />
भौजी को गढ़वा हे हीरे के गहने ,कांच की चुरियाँ मोय ,<br />
मइके इतना ही मान बहुत रे ,तेरी तरक्की होय.<br />
बरस में दो दिन पाऊँ वो देहरी ,इतना सा मन का चाव.<br />
*<br />
ये ही बहुत रे ,चिठिया पठा दे आए जो तीज-तेवहार <br />
मइया औ बाबा किसके रहे रे ,भइया से मइका हमार .<br />
फिर तो ये मेरा, तेरा वही घर, जीवन का ये ही हिसाब.<br />
*<br />
माँ जाए भाई सा दूजा न कोई ,दरपन सा निहछल भाव .<br />
भइया की भेंटें ऐसा लगे मइया पठवा दिहिन है प्रसाद,<br />
सुख हो या दुख,गए मौसम के, रुख पर तेरा न बदला सुभाव .<br />
* <br />
बचपन के सुख को जी लूँगी फिर से बाँधूँगी यादों की गाँठ ,<br />
संबल बनेंगी रँग से भरेंगी ,जब भी जिया हो उचाट .<br />
देखूँ तुझे सियरावे हिया, लागे बाबुल की छू ली छाँव .<br />
*.</div>
प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-60825473917356587172010-11-11T09:55:00.000-08:002013-04-02T16:37:15.503-07:00बदरा पे धूप<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
*<br />
देसवा की धरती पे पक रहे अमवा <br />
गूंज रही कोयल की कूक ,<br />
बदरा पे धूप सजे मनवा माँ हूक उठे ,<br />
बिरही जियरवा टूक टूक!<br />
*<br />
खेत धन-लछमी ,अँगनवा में गोरिया ,<br />
बाली उमरिया तहू पे लड़कौरिया .<br />
चुरियन की खनक संग अंग में उछाह <br />
दुई हाथन पछोरे भरि सूप !<br />
*<br />
अबकि बार सारो निपाट देई करजा , <br />
सहर लै जाइ के घुमाइ लाई ओहिका ,<br />
नैनन में चाव भरे सपन सजाय<br />
दमक-दमक नई चूनर में रूप <br />
* <br />
पी-पी पपीहरा गुँजाइ रह बनवा , <br />
जागत हिलोर उमगात मोर मनवा ,<br />
ढमक ढोल बाजे ,मंजीर खनखनावे,<br />
बजे चंग नेह-रंग रहे डूब !<br />
*</div>
प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-53844603858540083572010-10-27T21:29:00.000-07:002010-10-27T21:29:40.397-07:00विवाह गीत - बन्ना*<br />
ठाड़े रहियो बनरा ओही गली के किनारे पे <br />
गौरा पूजन हम चौरे पे जइबे ,भौजी के सखियन के साथ ,<br />
पूजन की थारी के रोली अखत धर, तोही का मँगिबे जनम सात,<br />
मिसरी-मखाने परसाद धरि जइबे ,<br />
ठाड़े रहियो ओहि मठिया के पिछाड़े पे <br />
*<br />
माँगन सुहाग भरभुजिन के जइबे ,सखियन के गीत की बहार <br />
अमर सिंदूर का असीस लेइ आइबे तौन होई मंगलचार <br />
नीम तरे चौतरा पे नेक बिलमइबे , <br />
ठाड़े रहियो बनरा, वा पान-फूल वारे के <br />
*<br />
कुंकुमपत्री धरि के गनेश पहिल पुजिबे,कोई विघन ना होय<br />
बारी कुँआरी ले सातों ही फेरे ,अचल सुहागिन होय <br />
आँचल असीस भरे ओ ही गैल जाऊँगी <br />
अकेल ठाड़े रहियो बनरा, बाहर के ओसारे पे <br />
*<br />
दूब-तेल पूजिवे ,हलदी की छींट डारि ,जइबे माँ के दुआर <br />
उनके परस रूप चढ़े सवायो ,पूरे मन- कामना हमार <br />
कनिया अरघ-जल सींच रही मारग, माथे सुहागिनी की छाँय <br />
देखे रहियो ऊपर के छज्जा के मुँड़ारे से.<br />
ठाड़े रहियो ...<br />
*प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-41524645462566608942010-10-21T21:32:00.000-07:002014-04-21T12:51:04.503-07:00बटोहिया -<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
*<br />
राह तीर पनघट पे गागर को धोय माँज,<br />
सीस साधि इँडुरी ,जल धारि पनिहारिया<br />
पंथी से पूछि रही कौन गाम तेरो ,<br />
तोर नाम-काम कौन, कहाँ जात रे बटोहिया.<br />
*<br />
जनम से चलो जात ,मरण की जातरा पे, <br />
मारग मैं धूप-छाँह आवत-है जात है !<br />
कोई छाँह भरो थान देखि बिलम लेत कुछू ,<br />
कोई थान ,घाम गात ताप अकुलात है !<br />
बेबस चलो जात कोऊ रोके को दिखात नाहीं<br />
मारग पे जात लोग साथ रे बटोहिया !<br />
*<br />
जाने कहां ते ई धरती पे आय पड़्यो<br />
जाने कइस ,जाने कहाँ ,जाने काहे जानो नाहिं <br />
कोऊ नाहीं हुतो, कोऊ जान ना पिछान <br />
खाली हाथ रहे दूनौ आप हू को पहचानो नाहिं<br />
मारो-मारो फिरत हूँ दुनियां की भीर <br />
चलो जात हूँ अकेलो, कहात हूँ बटोहिया !<br />
*<br />
साथ लग जात लोग ,और छूट जात हैं <br />
नाम मोय नायं पतो ,लोग धर दीनो है <br />
जातरा में पतो कौन आपुनो परायो कौन <br />
सुबेसे चलो हूँ संझा तक गैल कीन्हों है , <br />
पूछति है बार-बार कौतुक से भरी नार<br />
पथ को अहार ,कहा लायो रे बटोहिया ,<br />
*<br />
माथे धरी पोटली में धर्यो करम को अचार ,<br />
रोटी तो पोय के इहाँ ही मोहे खानी है ।<br />
मोह-नेह भरे चार बोल तू जो बोल रही <br />
ताप और पियास हरि जात ऐसो पानी है<br />
आगे को रँधान हेत करम समेट मीत,<br />
बाँध साथ गठरी में गाँठ दै बटोहिया !<br />
*<br />
राह अनबूझी सारे लोग अनजाने इहाँ ,<br />
आय के अकेलो सो परानी भरमात है <br />
वा की रची जगती के रंग देखि देखि मन <br />
ऐसो चकियायो अरु दंग रहि जात है !<br />
भूलि गयो भान काहे भेजो हैं इहाँ पे ठेल <br />
ओटन को लाय के कपास रे बटोहिया <br />
*<br />
उहै ठौर जाए पे पूछिंगे कौन काम कियो ,<br />
सारो जनम काटि कहो लाए का कमाय के <br />
घड़ा जल पूर सिर , पनिहारी हँसै लागि,<br />
बात को जवाब कइस देहुगे बनाय के .<br />
धोय-माँज मन की गगरिया में नेह पूरि <br />
पल-पल सुधि राख जिन पठायो रे बटोहिया <br />
*</div>
प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-18791361264780014552010-09-01T20:13:00.001-07:002021-02-01T13:27:21.367-08:00श्री कृष्ण-जन्माष्टमी पर - कृष्ण का न्याय.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
*<br />
गोरस की हाँडी कबहुँ बोरसी पे चढी नायँ ,तीज-त्यौहार हू कढ़ाही रही छूछ ही,<br />
एकै बार पेट तो भराय दिन भरै माँझ रात पेट बाँधि काट लेव चुपैचाप ही ,<br />
कइस दिन बिताय रहे जाके जगदीस मीत.साँच हैकि झूठ ही बनाय के सुनायो है , <br />
मीत हैं तो मिलबें की चाह नाहिं दीखी कबहुँ कैसो कठोर है करेजो जौन पायो है <br />
*<br />
कौन भाँ ति सामनो करौंगो हौं दरिद्र -दीन बे तो द्वारका के नाथ सबै विधि लायक हैं <br />
खाली हाथ को हिलात जाय ठाड़ होऊँ,इहाँ भेंट को कुछू न पास कोऊ न सहायक है <br />
बाम्हनी ने चार मुठी चिवरा उधार माँगि ,कपरा की पुटरी में दीन्ह गाँठ बाँधि के <br />
देखियो सँभारिहौ ई बिखरि न जाय कहूँ कपरा पुरान, तौन राखि लीजो साधि के <br />
*<br />
तुम्हरे गुरु-भाई बे द्वारका के धीस /ब्योहार इहैं उहाँ कुछू उहाँ भेंटिबे को चाहिजे ,<br />
आगे को हाल जानि ह्वैहैं सहाय ,पिया आज तो उहाँ की गैल तुरतै ही जाइए .<br />
*********<br />
भुज भरि भेंटे लाइ पाट पे बिठायो ,नीर नैन भरि आयो देखि दीन दसा मीत की ,<br />
पहिले ही आय, के उरिन होत एते दिन काहे को लगाय बलिहारी परतीत की <br />
लाजन के मारे कांख दाबे दुरावत हैं ,भेंट नहीं पावत हैं भुज भरि नेह सों,<br />
खींचि लियो हाथ थाम लीन्हीं पुटरिया, ई घट-घटकी जाने बात, इनसों छिपात को <br />
* <br />
वह रे सुदामा कइसी नियत तुम्हार, जासों नियति तुम्हार आज ई दिन दिखायो हैं.<br />
उहै भूखवारी मेरो भाग खाए की कसर चुकायबे को लै के पुटरिया आज मोर मीत आयो है <br />
काहे न देत जौन भेंट है हमार ,इहै चाउर के कारनै हम राह देखिबे करी,<br />
अब तुम निपाट दीन व्याज और मूल विधना हू ने तुम्हार ,सबै भर पाई करी , <br />
*<br />
दियो गुरु माई, सारो चबेना सपोटि गए, भौजी के चिऊरा हू देत नहीं लालची ,<br />
पहले उधारवारो करजा चुकाइ देहु ,पाछे मोर-तोर बात प्रीत-व्योहार की .<br />
अन्न-धन-धाम जौन अटके परे है इहै बाधा रही एक आजु पार करो भाव सों <br />
खींचि लई चिऊरन की पोट लै उछाह भरे भरि-भरि मूठी ,बे चबाइ रहे चाव सों ,<br />
*<br />
सकिलि आईँ रुकमिनी ,अकेल ना तुम्हार सबै, हम हू ना छोड़ी जौन है हमार भाग के <br />
छीनि लई ,थोर-थोर रानिन ने बाँट लई ,हमारो जो अहै अब राखौंगी साधि के <br />
हाय गजब ,एक-एक मूठी पे एक लोक वारत हैं बाम्हन पे मीचि आँखि आपुनी,<br />
अइसे लीन भए और सबै बिसराय दियो हम जो इसारे समुझात रहे ना सुनी .<br />
*<br />
मान-पान ,भयो सबै भाँति सतकार पाइ बिदा भे सुदामा ,आय ठाड़ भए द्वार पे ,<br />
अब ना लगायो देर दुख ना उठायो मीत , अंतर की बात मोंसों बाँटि लियो आय के . <br />
समुझै न विप्र कुछू चकियायो देखि रह्यो ,मोहन की लीला ,को पार कहाँ पाइये ,<br />
बिदा भे सुदामा पछतात जात मारग में काहे मेहरारू की बातन में आइगे !<br />
*<br />
<br />
पथ की थकान ई पुरानो पदत्रान, चलतई में घिसानो मार चुभो जात पायँ में <br />
चिउरा उधार के चुकाइबे परेंगे ,और हाल ई मिलाप के ऊ पूछिंगे गाँव में !<br />
बावली है बाम्हनी ,इहाँ की गैल ठेलि के लगाइ आस बैठी जिमि भाग फिरि जाइंगे <br />
लागी जा की आस रही, कुछू मिलो नायँ घरनी की बात मानि जाने काहे इहाँ आय गे ,.<br />
*<br />
जातइ ,करारी डाँट ओहिका लगावत हौं ,राज-पाट लायो हूं सो रखि ले सम्हालि के <br />
थोरो सो आपुनो उठाय सिर जीवत जो ,सारो लै डारो द्वारका की गैल डारि के .<br />
करत बिचार देखि रहे नए साज-बाज ,कतहूँ ना दिखात रहे जीरन अवास जो <br />
हाय-हाय भूलि पंथ , फिरै उहाँ आय गयो ,अब तो चार चाउर ही भेंट नहीं पास हो,<br />
*<br />
विप्र पछिताय रह्यो ,कहूँ निस्तार नाहिं,कान भरमात जइस टेरति है बाम्हनी<br />
अपुन छिपाय मुँह दुआरे से लौटि चले ताही पल दुपट्टा गहि खींचि लियो भामिनी .<br />
सारी की चींट फारि चोट आँगुरी पे बांधी , द्रौपदी को रिन उन चुकायो केहि भाँति सों ,<br />
ब्याज सहित मूल, जो चबेना को वसूल करि आपुनो ही भाग ,राज बाँटि दियो चाव सों!<br />
*</div>
प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-1473915143395926392010-08-24T09:40:00.000-07:002010-08-24T10:10:32.080-07:00भारत माने इंडिया*(यह प्रवासी बच्चों की ओर से )<br />
हमको भारत क्यों भाता है ,(भारत माने इंडिया )<br />
हमें इंडिया क्यों भाता है !<br />
*<br />
दादी-दादा -नानी-नाना ,बुआ और दो चाचा ,<br />
फूफा ,मामा-मामी, भाभी, जीजा ,मौसी मौसा <br />
यहाँ आंटी-अंकल तक व्यवहार सिमट जाता है ! <br />
*<br />
दीपक ले दीवाली आती,रंग लुटाती होली ,<br />
लोड़ी पर भर जाती अपनी भुने अन्न से झोली ,<br />
गर्मी में आ मानसून पानी बरसा जाता है.<br />
*<br />
रक्षाबंधन सारी बहने लातीं सुंदर राखी ,,<br />
बड़े प्यार से मीठा मुँह कर भेंट हमारी पातीं ,<br />
कृष्ण -अष्टमी झाँकी में सबने प्रसाद बाँटा है .<br />
*<br />
नीम डाक्टर पेड़ खड़ा है अपने दरवाजे पर <br />
पीपल की ठंडी छाया में बैठो सत्तू खा कर<br />
उनकी छाया रोग एलर्जी झट से भग जाता है <br />
*<br />
चाँद निकलता था छत पर जा कर देखा ध्रुव तारा ,<br />
सप्तऋषि के सातों को हमने ले नाम पुकारा .<br />
इन सबका हम सबसे ही जाने कब का नाता है .<br />
*<br />
शादी मुंडन ,गोद भराई या फिर कहीं रहे सगाई ,<br />
केसरवाला दूध पियो या घुटी हुई ठंडाई ,<br />
नाच और गानों में ही सप्ताह निकल जाता है ,<br />
*<br />
मिले ईद पर सेवइयाँ औ'बैसाखी पर हलवा ,<br />
दुर्गापूजा में नाचेगा झूम-झूम कर ललुआ ,<br />
साँझ पड़े तुलसी चौरे पर दीपक जल जाता है !<br />
*प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-18305359102129880942010-07-14T21:24:00.000-07:002010-07-14T21:32:36.726-07:00कृ्ष्ण-भक्ति का फ़ण्डा*<br />नहीं समझ में समा रहा है भगत तुम्हारा फ़ण्डा !<br /> गंगा जल से धो कर जैसे होय निरामिष अंडा !<br />*<br />मरद-जात है या मेहरारू पता नहीं क्या चक्कर !<br />कुछ न बताये कोई, सारे चुप रह जाते हँसकर ! <br />सब्ज़ीवाले सच सच बतला ,घुइयाँ है या बंडा !<br />*<br />धरी उतार कड़क वर्दी , पहनी घाघरिया चोली ,<br />पाँव महावर, रँगे होंठ , पर चुगली करती बोली ! <br />बजा तालियाँ ठुमक ठुमक कर नाच रहे हैं सण्डा !<br />*<br />गलियों का हुड़दंग देख कहती थीं मेरी नानी ,<br />अब समझी हूँ अर्थ और तुक, जो थी बात पुरानी - 3<br />'घर चून न बाहर कंडा ,होरी खेलें संड-मुसंडा !'<br />*<br />कितना कुछ पाया जीवन में गई न मन की तृष्णा,<br />कुण्ठित मन में विकृत लालसा मुख पर कृष्णा कृष्णा. <br />चेले चाँटी साथ लग गये करने वाग्वितण्डा !<br />*<br />गीता- ज्ञान भाड़ में, ऐसी तैसी कर ड्यूटी से ,<br /> सब कुछ छोड़ मुरीद बन गये मधुबन की क्यूटी के !<br />कुछ भी कह लो ध्यन लीन हैं ,बगुला भगत अखण्डा !<br />*<br />अंहाँ गोपिका ग्रामवासिनी नवल-किशोरी भोली ,<br />खेला खाया घाघ चलाये कहाँ नयन से गोली<br />नहीं अजूबा ऐसा देखा सप्त द्वीप नव खण्डा !<br /> *<br /> रंग रास अब रास आ रहा औरों से क्या नाता ,<br />जिसको आना हो आये जाये जो होवे जाता ! <br /> पीछा छूटे घरवाली से ऐसा करो प्रबन्धा !<br />*<br />चनिया चोली चुनरी धारण कर लो सभी सिपहिया<br />चूड़ी पहन बाँध लो घुँघरू नाचो ताता थैया ! <br />या ग्वाले बन साथ निभाओ लिये हाथ में डण्डा <br />*<br />लचका कमर ,लगाते ठुमके , मटकें हाथ नचाकर !<br />नगर नगर में करे नुमायश दिखला त्रिया चरित्तर!<br />यहाँ दाल में काला है कुछ , बतला देगा अन्धा !<br />*<br />विधि की अनुपम रचना का कैसा मज़ाक यह भद्दा ,<br /> ऊपर से प्रभु-इच्छा बतला और जड़ दिया रद्दा !<br />घाट-घाट का पानी चक्खा अब चल, बजा मृदंगा !<br />*<br />ग्रामर जिसने पढ़ी छोड़ दे नर नारी का चक्कर ,<br />कामन भी ये नहीं, बहुत संभव, हों न्यूटर जेंडर !<br />सुनी शिखण्डी की चर्चा पर अब तो प्रकट शिखण्डा !*प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-89124526895233274502010-07-12T17:20:00.000-07:002013-05-17T09:43:38.888-07:00चटखारे -<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
*<br />
जा रही पड़ोसन के घर मैं पर-चर्चाओं का रस पाने । <br />
अपने ही गली -मोहल्ले की कुछ मज़ेदार ख़बरें लाने ! <br />
मुझको न और, उसको न ठौर, गाड़ी खिंचती जाती आगे , <br />
खबरें दुनिया भर की, इक दूजे बिना भला किससे बाँटें !<br />
* <br />
हम इक दूजे के साथ बहुत अपनापन हरदम दरशाते , <br />
जैसे ही पीठ फिरी, मुख बिचका कर उससे छुट्टी पाते ! <br />
अपने को क्या करना भइया, ये दुनिया रंगरँगीली है , <br />
तुमको बतला दी बात सखी ,आगे की खबर रसीली है!<br />
* <br />
देखना, भागनेवाली है कोनेवाले घर की लड़की ,<br />
गुप्तन की झड़प बहू से- ऊपर ही है मेरी तो खिड़की ! <br />
दो दिन से महरी गायब है वर्मा घर में झाड़ू देते <br />
वर्माइन ,मुँह लपेट लेटीं ,वे बेचारे बर्तन धोते ! <br />
*<br />
दीवारों के भी कान, नाम मत ले देना मेरा बहना ! <br />
मैंने तुमसे कह दिया किन्तु तुम और किसी से मत कहना ! <br />
हम दोनो एक दूसरी की असलियत जानती हैं सारी , <br />
इसलिये सामने सदा साथ देते रहने की लाचारी !<br />
*<br />
दुनिया भर की पंचायत का जिस दिन न स्वाद मिल पाता है <br />
रातों को नींद नहीं आती रह-रह कर पेट पिराता है ! <br />
भोजन में गरम मसाले से आ जाता जैसे स्वाद नया , <br />
जितने मुहँ उतनी बातें, जुड़ जाता हर बार प्रवाद नया !<br />
* <br />
हमको तो शौक यही भैया चीजें स्वादिष्ट बनाने का , <br />
चटपटी मसालेदार बना ,चटखारे लेकर खाने का ! <br />
फिर नमक-मिर्च के साथ कान में औरों के पहुँचाते हम । <br />
रस का आनन्द बाँट कर सबको परम शान्ति -सुख पाते हम ! <br />
*</div>
प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-18810406784830661112010-07-04T16:20:00.000-07:002010-07-04T16:25:38.226-07:00तेरे माया-राज में*<br />मइया, तेरे राज मे चील -बिलौटे, शेर .<br />खूसट खडे नमन करें ,करते रहें अहेर !<br />क्या होगा अंजाम इसका बाद में ?<br />*<br />टुकडखोर आशीष दें ,पाकर फेंके अंश,<br />गद्दी सदा बनी रहे ,चले सदा यह तंत्र !<br />अकल चर रही घास ,तेरे राज मे !<br />*<br />करे न कोई काम पा सरकारी नौकरी ,<br />ये हाकिम -हुक्काम ,चिपके जैसे जोंक री !<br />सभी कागजी काज, तेरे राज में !<br /><br />मुख पर राम रचे हुये,दबा बगल में ईंट !<br />सीना ताने घूमते ,चोर उचक्के ,नीच !<br />है ईमान हराम तेरे राज मे !प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-37652616653842971372010-07-04T16:10:00.000-07:002010-07-04T16:17:44.881-07:00हसरतें --*बड़ी शिकायत है मुझे बड़ा दुख है ,<br />पति से कहा मैने -<br />'माँ-बाप ने कैसा लड़का ढूँढा मेरे लिये!<br />'क्या देखा तुम में ,तुम्हारी डिग्रियाँ ,नौकरी!<br />अरे इस सब से क्या मिला मुझे ?<br />किसी लालू जैसे से ब्याहते तो आज मै भी <br />कहीं की मुख्यमंत्री होती ! '<br />*<br />पति ने बड़ी ठण्डी साँस छोड़ी -बोले -<br />'मेरी भी हसरत मन-की-मन में रह गई १<br />तुम जैसी पढी-लिखी बीवी पल्ले पड़ गई १'<br />'क्या मतलब 'आँखें तरेर कर पूछा मैंने १<br />बोले-'काश राबड़ी जैसी पत्नी होती ,<br />जब चाहता रसोई मे घुसा देता<br />जब चाहता अपनी जागीर का मुख्य-मंत्री बना देता १<br />जहाँ कहता अक्षर-अक्षर जोड़ दस्तखत करती,<br />हमेशा मुंह बाए मेरा मुँह तकती !<br />*<br />बड़ी कुण्ठित हूं मै ,<br />सच्ची मैने बेकार पढ़ा-लिखा !<br />पढ़-लिखकर हमलोग अपनी ही लुटिया डुबोते हैं ,<br />सोचते हैं , समझते हैं ,रोते हैं!<br />इसलिए कुछ जानने की<br />समझने की बूझने की कोशिश मत करो ,<br />यह तो संज्ञेय अपराध है !<br />बोलो ,पर बिना समझे-बूझे,<br /> क्योंकि अपना ही राज है १<br />चिल्लाओ ,चीखो ,छीनो ,झपटो ,मारो-काटो ,<br />तुम सक्रिय कहाओगे और देश की रेलगाड़ी <br />फूलन-सुन्दरी की तरह जहाँ चाहोगे रुकवाओगे!<br />*<br />जो बड़े को हाँके वही ताकतवर है ,<br />अक्ल छोटी होती है , <br />भैंस बहुत बड़ी.<br />सौ मूर्खों को एक डण्डे से हांके वही कद्दावर है !<br />हमारे भेड़-तन्त्र मे एक के पीछे सारा रेवड़ चलता है ,<br />पीछे-पीठे सारा देश चलता है १<br />भैंस पर बैठो ,हाँक ले जाओ , छोड़ दो पानी में<br />और शान से कर्णधार बन ,<br />जा बैठो देश की राजधानी में !<br />*प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-4828668011735684722010-04-19T22:34:00.000-07:002013-04-02T16:47:49.945-07:00एक -चित्र<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
*<br />
भोर भयो ,दुलहिन निकरि गई भुरहरे ही <br />
पति सोवत रहे दिन चढ़े उजारे लौं । <br />
जेठ ननदोई सबै अंगना बिराज रहे <br />
न्हाय-धोय दुलहिन आय गई रसुइया मां! <br />
*<br />
लाल लाल चुनरी सितारन से टँकी जाकी ,<br />
किरन किनारी की आनन पे छाय रही,<br />
बैठि गई जिठनी के तीर आय चउकी पे <br />
भाल लगी बिंदिया कइस मोहिनी सी डारि रही!<br />
*<br />
कहाँ गयो सारो ननदोई पुकारि रहे <br />
अबहूँ न नींद खुली दिन चढ़ि आयो है<br />
सोयो सो लरिका अँगड़ात- जमुहात भयो <br />
बाहर निकरि अँगना में आय ठाड़ो है !<br />
*<br />
भइया मुँह दबाये हँसैं ,जीजा को अट्टहास<br />
छुटका मुसकाय मौन तकै जात सामुने ,<br />
औंचक सो भौंचक सो समझ न पायो कुछू<br />
ठाड़ो चकरायो कहा रच्यो इहाँ राम ने । <br />
*<br />
भाभी निकरि आई रसोई से हँसी से भरी-<br />
'कुर्ता पे छाय रहे सेंदुर के दाग रे <br />
अइना में जाय रूप आपुनो निहार लेहु<br />
मुख दिखात घड़ी जइस बारह बजाय के.'<br />
*<br />
गूँजी समवेत हँसी, कमरा में भागि गयो <br />
कौन परे फालतू इहाँ की खुराफात मं <br />
नयो -नयो पति भकुआयो सो रहे चुप्प<br />
छेड़ रहे सिगरे इहाँ तो बात-बात में !<br />
*</div>
प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-37498474421986437252010-03-26T20:50:00.000-07:002013-05-15T21:14:55.402-07:00हमको क्या करना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
*<br />
हमको क्या करना .<br />
भरने दो उसकी बारी है ,<br />
सही-ग़लत जो हो ,<br />
अपने को क्या फ़र्क पड़ेगा ,<br />
खा-पी ले और सो !<br />
जब हम पर आये देखेंगे ,<br />
व्यर्थ यहाँ फँसना.!<br />
*<br />
हम काहे को पड़ें बीच में ,<br />
औ विरोध झेलें <br />
पड़े बीच में काहे <br />
जिस पर आई वो झेले <br />
जिस करवट से ऊँट रहे <br />
बस दे दो मत अपना <br />
*<br />
कोई बढ़े-चढ़े क्यों आगे ,<br />
दुनिया के चक्कर ,<br />
हज़म न कर पायेगा कोई ,<br />
देगा ही टक्कर .<br />
देख तमाशे सबके ,<br />
बस सिर बचा रहे अपना<br />
*<br />
सबसे मीठा बोलो ,<br />
चाहे सच चाहे झूठा ,<br />
अपना काम निकालो <br />
चाहे टेढ़ा या सीधा .<br />
सारे प्रश्न दफ़ा कर <br />
चाहे जैसे मौज मना <br />
*<br />
कोऊ भी नृप होय ,<br />
हमें का होवेगी हानी ,,<br />
अपनी ढपली बजा,<br />
यही नुस्खा है लासानी <br />
<br />
अपना मतलब पुरे ,<br />
और फिर हमको क्या करना!</div>
प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-1021349781111289352010-02-28T10:31:00.001-08:002013-04-02T16:51:43.430-07:00नचारी - होरी के हुरंग में..<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
*<br />
होरी के हुरंग में देखोई सारदा को रूप <br />
सारी सुपेद सारी कइसन रँगाय गई .<br />
पुस्तक के आखरन पे छायो अबीर,<br />
सेत सतदल की पाँखुरी गुलाल सों छिटाय गईं,<br />
*<br />
ढोल बजे ढम-ढम ,मँजीरन की झमक-गमक,<br />
चंदन परि पाँखुरी पलास लिपटाय गई.<br />
पुस्तक बहावन की बात करत रहे ताकी ,<br />
अटपटी बानी पे खुदै बानी रिझाय गईं. <br />
*<br />
बीना के तारन पे बजन लाग लोक- राग ,<br />
सुर की तरंग मंत्र-गान बिसराय गई.<br />
बहिनी पे रंग, आँख फारि देखि रहे संभु,<br />
चूकीं न भवानि ननदी को बोल मारि गईं -<br />
*<br />
'बनी बड़ी कुमारी, कलावती अरु ज्ञानमती .<br />
भइया की भांग लगत बहिनी चढ़ाय गईं .<br />
सतगुन की साधिका ह्वै रहैं अविकारी गिरा ,<br />
माधव मदन ऋतु पाय फगुनाय गईं .'<br />
*<br />
गौरा के बोल सुनि बानी मुसकाय रहीं,<br />
मति मारी गई भौजी की, समुझाय को ,<br />
भइया को देखि सकुचाय के कबूल दियो ,<br />
परतिभा की विनती के हठ के सुभाय को . <br />
*<br />
रंगीन चसमा दै दीठ भरमाई अइस <br />
अविकार सदा मोर उज्जर पवित्रता<br />
कामना पुराय तासों इन्द्रजाल रच्यो इहाँ,<br />
सबै अरुझाय गये ,देखि के विचित्रता <br />
*<br />
जेहि ठौर राजें हंसवाहिनी सरस्वती-माँ<br />
तहाँ प्रतिभात रहे मति की समग्रता<br />
निर्मल-धवल सुश्लोक सदा वरदायिनी हे,<br />
छमिहो हमार दोष तीन लोक अर्चिता !</div>
प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-15816102164923244562010-01-15T10:12:00.000-08:002013-04-02T16:53:26.825-07:00को बचाय रे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मास्टर ओंकाल्लाल हिन्दी पढ़ावत में,लिखो कुछू और कुछू और बोल जात रहे <br />
लरिका मुसुकायँ देखें दायें और बायें जबै खैनी धरी हथेली पे ताली दे सजाय के<br />
<br />
मल्हार राव एक कारों भुजंग सो हो देखत ही बोलत सनीचर सो दिखात है ।<br />
अउर ई मल्हरवा पाठ कबहुँ याद ना करै अकलै में नाहिं वाके घुसति कोऊ बात है<br />
<br />
ओंकाल्लाल की खेनी से पियरे हाथ गदगदी गद्दी सम दनादन कूटे जात हैं । <br />
दाँतन में खैनी दबाय हड़काय रहे गोल-गोल आँखिन मा गुस्सा मिची जात हैं <br />
<br />
गोल-मोल देह ,ऊँची धोती पे सलूका फूले गाल सबै लरिकन में ढब्बू जी कहात हैं <br />
अरे हट काला डूँड सनीचर बज्जर मसान मुख से उचारि रहे मार गुस्साय के <br />
<br />
झपाक् झापड़ थप्पड़न का को गिनात रौरा मचात हाय हाय ,हाय हाय बप्पा रें <br />
उछल -उछल चीख रहो कूदि-कूदि जात लरिकन में सोर ढब्बूजी सों को बचाय रे</div>
प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-83414447133946567492010-01-15T10:10:00.000-08:002013-04-02T17:07:08.816-07:00होई का बखानि के<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मालवा की धरती की साँवली -सी माटी को सौंधा संग संग हमार डोलत लगे-लगे <br />
नदियन को उहै जल सूखि नहीं पावत हमार नयना में समायो पिरीत पगे !<br />
जीवन को नेह भरि ,आपुनपो देइ करि अन्न से रची ई देह रचना उहै की है <br />
बोल-चाल रीत-भाँत सहज सुभाव अउर निहछल वेवहार की परतीत भी उहै की है ।<br />
*<br />
लरिकिन के स्कुलन को टोटा रहे तबै हम पढ़े रहे सदा लरिकन के साथ में ।<br />
सबसे ज्यादा नंबर हमारे ही आवत,मानो ना तो पूछ आउ जाइ आस-पास में <br />
लरिकिन के पढ़न को परबंध कहां रहे तबै घरै बैठ जाति पास हुई दर्जा पाँच में <br />
हम तो सातवी किलास पे ही परवेस लियो जामेटरी एलजबरा पढ़े सबै का साथ में <br />
*<br />
मदन लाल इँगलिस को खींच-खींच बोले जौन मुँह में खटास वाके घुलीघुली जात हौ<br />
एक संग्राम सिंग हरी सिंग से कहे कहत रहे टपक सून्द्री बियाह लावेगो बाद को<br />
भँवर सिंग पैरेलल को कहत रहे प्यारे लाल मुस्किल ह्वै जात संग बैठनो किलास में ।<br />
एक बेर संगरमवा पेड़ तरे खड़ो रहे ,तबै ही ततैयन ने झपट्टा मारि घात में .<br />
<div>
<br /></div>
*<br />
हाय-हाय करि बिलखात भागो चप्पल छोड़ि ,कुरसी के आस-पास कूदै मार चिल्लाय के <br />
मारे दरद मुँह लाल लाल भयो गाल नाक हाथ मूँ पे हू ततैया डंक छाये के<br />
हाय,हाय,हाय,संगराम बिलखाय ,हरी सिंग छोट भाय कहै कहा करौं माय रे<br />
भागमभाग सब मचाय ,कुछू पावैं ना उपाय तिन्हें कउन समुझाय के कुछू तो बताय रे !<br />
*<br />
ततैया सुभाव ,देखे आव नाहीं ताव ,जौन पावे आस-पास डंक मारि तड़पाये रे !<br />
भंवर सिंग दौर पर्यो कुप्पी उठाय लायो डारि -डारि घासलेट बिलबिलात गात पे<br />
पीर ना पटाय संगराम चिल्लाय बावलो सो नाच कूद रह्यो चैन परे नाहिं रे<br />
दौरि-दौरि लरिकन के झुंड आय छाय, सबै बन्दरन की नाईं झाँकि आँखि फार-फार के <br />
*<br />
मास्टर के रोके, कोई रुके नाहिं अँधाधुंध भागे सारे छोरे मार हू ते ना डेराय ही <br />
तीनि लरकिनी ,हमार साथ अउर दुइ जनीं ,परमिला औ'सान्ती रहे उहै किलास की <br />
का करैं रुबास आय , हँसी आय, भाँत-भाँत छोरे घिरेआसपास के सारे किलास के<br />
केहू भाँति रास्ता बनाय निकरि आये, अउर आपुन घरै घुसे जाय तुरत भागि-भागि के ।<br />
*<br />
ई तो एक दिन की कहानी भई ,भइया रे ,<br />
और का बतावैं ,का करिहौ अउर जानि के <br />
कालीसिंध नद्दी और सोनकच्छ कस्बा को <br />
हाल मजेदार पर का होई का बखानि के !</div>
प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-23748118640225583522009-12-24T18:11:00.000-08:002013-05-10T17:48:54.100-07:00छिनाय गयो हमरो ही नाम ,<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आजु तो न्योति के बिठाई रे कन्या<br />
हलवा पूरी औ'पान<br />
सोई बिटेवा ,परायी अमानत ,<br />
चैन गा सब का पलान !<br />
*<br />
कल ही लगाय के हल्दी पठइ हौ<br />
मिलिगा , सो ओहिका भाग<br />
आपुन निचिन्त हनाय लीन गंगा <br />
बियाह दई, इहै बड़ काज !<br />
*<br />
एकइ दिन माँ बदल गई दुनिया <br />
छिन गयो माय का दुलार <br />
बियाह गयी कन्या , <br />
समापत भा बचपन<br />
मूड़े पे धरि गा पहार ! <br />
*<br />
सातहि फेरन पलट गई काया <br />
गुमाय गई आपुन पहचान ! <br />
बिछुआ महावर तो पाँयन की बेड़ी<br />
सेंदुर ने छीन्यो गुमान ! <br />
हमका का चाहित हमहुँ नहिं जानै , <br />
को जानी , हम ही हिरान !<br />
*<br />
आँगन में गलियन में , <br />
बिछड़ी सहिलियन में, <br />
हिराइगा लड़कपन हमार<br />
छूट गयो मइका ,<br />
लुपत भइली कनिया, <br />
बंद हुइगे सिगरे दुआर !<br />
ऐही दिवारन में <br />
उढ़के किवारन में सिमटि गो हमरो जहान !<br />
*<br />
रहि गई रसुइया , <br />
बिछौना की चादर , <br />
भीगी फलरियाँ औ'रातन को जागर ! <br />
अलान की पतोहिया , <br />
फलान की मेहरिया , <br />
ढिकान की मतइया ,<br />
बची बस इहै पहिचान !<br />
मर मर के पीढ़ी चलावन को जिम्मा .<br />
हम पाये का का इनाम ?<br />
छिनाय गयो हमरो ही नाम ,<br />
मिटाय गई सारी पहचान .<br />
*</div>
प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-74841806739523572982009-12-22T20:19:00.000-08:002009-12-22T20:22:22.270-08:00ठेल रहे बेकार*<br />दस-दस दिन पहले यहाँ दे-दे धक्का मार,<br />चले जा रहे बरस को,ठेल रहे बेकार !<br />इत्ते दिन बीते जहाँ ,सबर करो कुछ और <br />दिन तो पूरे करेगा बेचारा लाचार !<br />*<br />थोड़े दिन की बात है , अभी समय है शेष <br />अपने आप खिसक रहा ,फिर क्यों खींचो केश ,<br />जाते इस मेहमान की कर लो ख़ातिर और ,<br />हो सकता कुछ और रंग दिखला दे अवशेष ! <br />*प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-49468774407279671432009-12-04T16:24:00.000-08:002013-04-02T17:15:08.829-07:00बाबूजी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बिदा होत हमका सबै समुझायो रहे,ससुर जेठ सामैं मुँ ढाँकि के ही रहियो ।<br />
ऊँची अवाज नहीं ,केहू को सुनाय न दे मंद-मंद हँसियो ,मुस्कराय रहि जइयो <br />
देउर ननद संग हम बतियात रहे ,माथे को पल्लू खुलि पर्यो रहे पीठ पे <br />
ऐते में दीख्यो ,ससुर जी उहाँ आय गये हाय राम पल्लो न आय रहो हाथ में <br />
*<br />
मेज पर्यो मेजपोस झटपट घसीटि लियो वाही से मूड़ मुँह भींचि लियो आपुनो <br />
कापी -कितबियाँ उलटाय गई नीचे अउर स्याही की दवात हू पलटि गई का करौं<br />
देवर चिल्लाय परो-हाय हाय भाभी, अउर हम घबराय अब होई का राम जी <br />
चुप्पे रहे ,बोलैं का गलती हमार अउर और बाबू जी ठाड़े बड़ी मुस्किल में जान री !<br />
*<br />
देउर बतायो फिन बाबू चकराय गये ई का भयो देखि रहे आँखि फार-फार के<br />
का कहैं ,तुम अइस डरी -मुँदी मूड़ डारे ऊ हँसी दबात लौटि गये कमरा में हारि के ! <br />
थोरी देर बाद 'बहू को इहाँ भेजि देओ ,डरे-सकुचे से जाय ठाड़े भे पास में <br />
' आओ बहू , कुर्सी पे बैठि जाओ नेक इहाँ ,इंगलिस अखबार ऊ उठाय लेओ हाथ में <br />
*<br />
घूँघट हटाय पढि हमका सुनाय देओ आजि से तुम बात करो हमरे हू साथ मे !<br />
तीनि बड़ी बहुअन सों आज तलक बोले नाहीं छोटी बहू की पुकार होत बात-बात में !<br />
सुनि अखबार दीन्हें पच्चिस रुपैया ,हम उनका चरन छुइ माथे चढ़ाय लिये <br />
विद्या के बड़े सौखीन रहे बाबूजी हम जौन लिख्यो माँगि पढ़ते सिहाय के <br />
*<br />
चउका में देखि ऊ सासू-माँ का टेरत थे काहे को ओहिका घुसायो रसुइया माँ <br />
कित्तो सम्हरिये ,अभै पढ़त से आई ह्वै ,रहे देओ उहका न डारो चूल्हा चउका माँ ।<br />
सासू चिल्लाय परीं न्हाय-धोय आई तासों अदहन में दार डारि भर को पठायो हम <br />
तुम्हरी त्यूनार बहू बी.ए .पास आई अंगरेजी गिटपिटात इहौ बात सबै जानित हम !<br />
*<br />
तास खेल फ़्लश, उहै पइसन को दिवारी वारो, बाबूजी ही हमका सिखायो पास बइठ के <br />
दैके रुपैया ऊ बोले चलो दाँव चलो ,पइसा सिखाय देगा खेल बड़े खूब से !<br />
कायथन को घर इहाँ की चाल औरे और कोई माने न चाहे तिन्हें हिन्दुन की जात में <br />
खिड़की दिमाग की खुली ही राखत हमेस तभै तो सदा चलत हैं टाइम के साथ में <br />
*<br />
तीन दिन दिवारी पे फ़्लश दिन-रात जमें ,एक डेढ़ बजे सोवैं रोज रात-रात में <br />
नाते के देउर और ननदें जमें ही रहें बहू खेलें-बेटा खेलें ससुर जी भी साथ में <br />
अरे हाँ ,दिवारी पे ,बोले फलान जाओ ,दुलहिन को रोसनी दिखाय लाओ जाय के <br />
बाबू जी ,भीड़ इनको कहाँ लै जायँ हम उ हाँ बजार में ,का करिहो पठाय के <br />
*<br />
आये ऊ काँधे हमारे धरि हाथ बोले ,नाहीं लै जात बदमास जाने देओ वा को <br />
काहे उदास होति कामचोर जनम को ऊ, चलो हम तुमका दिखाय चलत साथ में <br />
आँखें दिखाय हम आपुन मनई से कह्यो तुमका का जोर परी चलत हो काहे ना <br />
ऊ बूढ़ मनई ,उनका जाये का परी, कइस लगी बहू जाय ससुर जी के साथ मां <br />
*<br />
बाबूजी ,बाबू जी ,आप बिसराम करो , आप जइस कह्यो हम दिखाये लै जात हन<br />
रोसनी ससुरारै की मन माँ समाय गई ,बाबूजी की याद सदा आवत है साथ में !<br />
बड़े पढ़ेगुने ,खुले मन के हमार ससुर ,सासू-माँ उदार कुछ पराने खयाल की ,<br />
तीन बहू देखि टोका-टाकी बिसारि दीन ,सारी छूट छोटी ने पाई बड़े भाग की !<br />
*<br />
चुपके से हमका मिठाई पकराय देतिं , कुइयाँ वाली सिदरी में खाय लेओ जाय के <br />
सासू-माँय से तो सहिलापो निभि जात रहे ,हम जौन पूछत ऊ सबै कुछ बताय दें ,<br />
बाबूजी की चिट्ठी में सुरूआत कइस करत रहीं हमका ई जानन को अम्माँ मन होत है <br />
काहे से कि पोता की लार जिन टपके हमार चाह पूरी होय उन्हई को अदेस है <br />
*<br />
देखो तुम कहियो किसऊ से न जाय हम तुमका बताये देत आपुस की बात ही<br />
शिरीमान प्यारे जी ,सदा इहै लिख्यो अउर नीचे आपुन के लै जनम-जनम आपकी <br />
ब्रेड औ'जिलेबी हमका पठवाय देत जबहूँ त्यौहार करै बीच में हम आवते !<br />
कमरा में आय आय देख जात बाबू जी पंखा बहू को कोऊ लै न ले उठाय के <br />
*<br />
हमका उन्हइ की याद बार- बार आवति है ससुर न कहिबे हमार बाबूजी रहैं ,<br />
उनको लाड़-प्यार कोऊ पुन्न हौ हमार, किती किती बात याद जिउ भरि आवत हैं !</div>
प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-17892339732209508812009-11-18T18:57:00.000-08:002013-04-02T17:19:44.242-07:00इत्तो बहुत बताय दियो<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
*<br />
घर की पोल खोलिबे से लागति है लाज <br />
पर भैया, तुम पूछे हो ,बताय हमका परी !<br />
बाप-पूत दोनो बड़े हिरसू हैं चाहत हैं ,<br />
दूजे को छोड़ करौं वाही की चाकरी !<br />
*<br />
देखि जलपान ऊ बिराइ मुख कहत- रहा ,<br />
पापा को भर-पलेट इत्ता -सा हमका !<br />
बिटिया तो ऊ सेऊ चारि हाथ आगे अहै ,<br />
देखन में लागत हैं दोऊ छटंका-सा !<br />
*<br />
अपने हसबेंड जबै टूर करि आवत तब <br />
कित्ते परकार की रसोई बना लेती हैं ,<br />
अउर हमलोग इकल्ले रहि जात तबै <br />
दार-रोटी राँध देति कैसे टरकौती हैं !<br />
*<br />
अभै कल ही तो नहाय के निकरि आई ,<br />
कमरा में जाय पहिरौंगी साड़ी नीक से !<br />
बाहर खड़ो पूत आँखे तरेर लाग '<br />
माँ ली जला कपरा पहिन के आऊ थीक छे !<br />
*<br />
बित्ता भर छोरा बनियान भर पहिने खड़ो <br />
टोक रह्यो कइस मैं जोर से हँसी बड़ी !<br />
मार खिसियाय जोर-जोर रोये लाग , <br />
और अपने सपूत की बात जब पता पड़ी !<br />
*<br />
नेकर तो पहिन, काहे परेसान होत यार ,<br />
रोना बेकार तेरी बात कहाँ आती हौ !<br />
बेटा निचिन्त जाय बहनी के संग खेल ,<br />
तेरी माय देखिबे को हौं ही इहाँ काफ़ी हौं !<br />
*<br />
बस अब ढक्कन दै कटुरदान रख देत , <br />
आगे कुछु बोलन -बतान काहे को करी !<br />
अरे मोर भैया ,इत्तो बहुत बताय दियो<br />
घर-घर की बात ई तो सबै जानबे करी !<br />
*</div>
प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-40221490103240821632009-11-16T16:21:00.000-08:002013-05-15T21:17:22.008-07:00चुप्प रहि लेत हौं !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बिटवा को माय ने बिगारि दियो कइस <br />
दुइ बच्चन को बाप ह्वै छटूलो बनो जात है !<br />
का कहै मरद जात कहै खिसियाय जात ,<br />
आपुनी जो बात होय मिरची लगि जात है !<br />
*<br />
पेट नाहीं भरत तो कहूँ मन कहाँ ते लगे <br />
भइया के बुलाये जबै मैके चली जात है , <br />
देख लेओ ढंग हम अभै दिखलाय देत <br />
अम्माँ के सामैं और सिर चढ़ि जात हैं <br />
*<br />
मारे जल्दी के गरम चाय में मूँ डाल दियो <br />
सासू देख लीन मुस्काति है बहुरिया <br />
कइस चाय दई वाको मुँहै मार जरौ जाय , <br />
पलेट में उँडेल ठंडाय दे बहुरिया !<br />
*<br />
पियाला की चहा तो पलेट में उँडेल दई ,<br />
भागि आई उहाँ ते तुरंत सासु यू न कहें ,<br />
फूँक मार-मार के पियाय दे बहुरिया !<br />
<br />
हमको तो दफ़तर जाये का देर होइ जाई , <br />
अभै तो नहाय का है .काहे ना नहात हो ?<br />
काहे से कि गमछा किसउ ने कहूँ डारि दियो ,<br />
तुरत ना पोंछे हमका ठंडी लगि जात हौ !<br />
<br />
गमछा तो लाय के थमाय दीजो बाद में <br />
पहिल ताता पानी पहुँचाय दे बहुरिया ।<br />
*<br />
गमछा थमाय भागि आई कहूँ कहि न दें ,<br />
साबुन लगाय अन्हबाय दे बहुरिया ।<br />
<br />
बड़ी देर लागि तहाँ झांकेउ न कहें न कहूँ <br />
उहका तेल-बुकवा लगाय दे बहुरिया !<br />
एतन में कान सुन्यो हमरी बुस्सट्ट कहाँ <br />
दौरि घबराय धरि दीन्ह और भागि आये <br />
<br />
कहूँ सास बोलि उठें हमका तो जोर परी <br />
बटन खोलि वाको पहिराय दे बहुरिया !<br />
*<br />
थारी खाना दियो आपै खालिंगे बैठि <br />
हम तो दूर बैठि के अगोरत रसुइया , <br />
दार में नोन थोरो फीको है ,हम लाय दियो <br />
दारि देउ नेक तुहै हमरी कटुरिया <br />
हम समुझायो हमका कइस अंजाद परी <br />
या को सबाद तुम्हें आपुनो हिसाब करि <br />
*<br />
एतन में सासु माय बोलि परी काहे नाहिं <br />
नेक नोन डरि के मिलाय दे बहुरिया !<br />
चुटकी भर नोन डारि भागि आये झट्ट सानी <br />
उनको का ठिकानो कहै मो ही सो कहें लाग<br />
कौर कौर करके खबाय दे बहुरिया !<br />
*<br />
मर्दुअन के संगे सनीमा देखि आये जौन<br />
मोर पूत हाय मार कैसो थकाइ गा ,<br />
आँखिन में नींद भरी कैसी झुकाय रहीं .<br />
जाके तू बिछौना बिछाय दे बहुरिया !<br />
चट्ट पट्ट भागि आई सासु माँ इहै न कहैं <br />
लोरी गाय-गाय के सुबाय दे बहुरिया <br />
*<br />
ई लिख ततैया केर छत्ता में हाथ दियो <br />
देखि लीजो दौरि-दौरि आय डंक मरिहैं <br />
बिलैया के जैसे खिसियाय नोचें खंबन का, <br />
लरिकन का जत्था खौखियाय दौरि परिहै ,<br />
<br />
लिखि कै धर्यो है ,दिखावन की हिम्मत नाहिं, <br />
जाही से परकासन की गुस्ताखी नाहीं करिहौं <br />
केहू के चिढ़ाबो नाहीं ,थोरो सो विनोदभाव <br />
नाहीं आच्छेप मैं साखी दै कहत हौं <br />
*<br />
काटन को दौरि जनि परे इहां पुरुस वृंद <br />
तासे पहिले ही हौं तो माफ़ी मांगि लैत हों !<br />
लंबी है गाथा सासु-माँ तुम्हार पुत्तर की <br />
आगे कबहुँ कहिवे आज चुप्पै रहि लेत हौं !<br />
*</div>
प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-41763767670680081522009-11-12T15:52:00.000-08:002013-02-25T14:24:26.288-08:00लोक-रंग -<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मुँह टेढा लिये खिड़की पे आ गया , <br />
मेरे कमरे में चाँद लगा झाँकने ! <br />
* <br />
भोर बोला था कागा अटारी पे , <br />
दूध उबला था चूल्हे की मुँहाड़ी पे , <br />
मैंने सोचा ये,मैं ही भरमा गई , <br />
एक बादल सा दिख गया पहाड़ी पे ! <br />
फूल बगिया में हँसी गुल बकावली , <br />
और बेला महक गया रात में ! <br />
* <br />
पिया पिया बोल गया क्या पपीहरा , <br />
जिया कैसी वियाकुल विथा घिरा , <br />
आँख देख रही दूर कहीं जाने क्या , <br />
कहीं विरही की बाँसुरी ने सुर भरा ! <br />
राग भीतर कचोट सी जगा गया , <br />
चार बूँदें छलक आईं आँख में ! <br />
* <br />
फिर खटकी थी कुंडी दुआरे की , <br />
और बत्ती जली ओसारे की ! <br />
सेत केसन में लाली सिन्दूर की , <br />
बिंदिया माथे अठन्निया अकार की , <br />
सास दे रहीं 'असीस पूत चिर जियो ', <br />
मूछोंवाले ससुर जी भी साथ में ! <br />
* <br />
पास आ रही लो, चलने की आहटें । <br />
और पास ,और पास, और पास हो ! <br />
रात जादू बिखेर रही सामने , <br />
आधे आंगन की चाँदनी उजास हो ! <br />
आँख मूंदे पड़ी मैं चुपचाप ही, <br />
बैरी कँगना खनक गया हाथ में !</div>
प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-86345238109930164512009-11-04T13:24:00.001-08:002020-08-13T18:07:17.080-07:00नचारी -ओ,नटवर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
दुनिया के देव सब देवत हैं माँगन पे ,<br />
और तुम अनोखे ,खुदै मँगिता बनि जात हो !<br />
अपने सबै धरम-करम हमका समर्पि देओ ,<br />
गीता में गाय कहत, नेकु ना लजात हो !<br />
*<br />
वाह ,वासुदेव ,सब लै के जो भाजि गये,<br />
कहाँ तुम्हे खोजि के वसूल करि पायेंगे !<br />
एक तो उइसेई हमार नाहीं कुच्छौ बस ,<br />
तुम्हरी सुनै तो बिल्कुलै ही लुट जायेंगे! <br />
*<br />
अरे ओ नटवर ,अब कितै रूप धारिहो तुम ,<br />
कैसी मति दीन्हीं महाभारत रचाय दियो !<br />
जीवन और मिर्त्यु जइस धारा के किनारे खड़े,<br />
आपु तो रहे थिर ,सबै का बहाय दियो !<br />
*<br />
तुम्हरे ही प्रेरे, निरमाये तिहारे ही ,<br />
हम तो पकरि लीन्हों तुम छूटि कितै जाओगे य़<br />
लागत हो भोरे ,तोरी माया को जवाब नहीं,<br />
नेकु मुस्काय चुटकी में बेच खाओगे !<br />
* <br />
एक बेर हँसि के निहारो जो हमेऊ तनि ,<br />
हम तो बिन पूछे बिन मोल बिकि जायेंगे ! <br />
काहे से बात को घुमाय अरुझाय रहे ,<br />
तू जो पुकारे पाँ पयादे दौरि आयेंगे !</div>
प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1475347428045094357.post-19998768244584863332009-10-28T10:08:00.000-07:002013-05-17T10:04:48.970-07:00का कर लेई काजी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मोहे टी.वी. मँगाय दे मैं टिविया पे राजी ! <br />
जा पै होइ रँगवारो टीवी करौं ओही से सादी ! <br />
* <br />
काला और सुपेद न भावै ,टीवी बस रंगवारो , <br />
बिना रँगन को मजा न आवे तुमहू नेक विचारो ! <br />
छैल-छबीली फर्वट छोरी दो करवाय मुनादी <br />
* <br />
मरद चलेगा लंबा-नाटा काला-गोरा कोई, <br />
मोटा पातर,मूँछ-निमूछा फरक पड़े ना कोई ! <br />
दिन भर बाहर रहै मरद ,रौनक टीवी से हाँ ,जी ! <br />
* <br />
बंदर जैसा हो कोई , जा की महरारू सुन्दर , <br />
हर देखैवाले के हिय मां हूक उठै रह रह कर ! <br />
सरत लगा ले कोई चाहे ,हौं ही जितिहौं बाजी ! <br />
* <br />
पढ़ी-लिखी तो नहीं खास पर समझूँ ढाई आखर , <br />
उइसे ही सब कहें सयानी ,का होई पोथी पढ़ <br />
ज्यादा पढी-लिखी छोरी तो लगे सभी की दादी ! <br />
* <br />
जइस खुदा जी खुदै देत सक्कर खोरेन का सक्कर , <br />
हमरा भी हुइ जाई कलर टीवी वाले सों चक्कर <br />
टी.वी.वाला राजी तो फिन का कर लेई काजी !</div>
प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com0