बुधवार, 18 नवंबर 2009

इत्तो बहुत बताय दियो

*
घर की पोल खोलिबे से लागति है लाज
पर भैया, तुम पूछे हो ,बताय हमका परी !
बाप-पूत दोनो बड़े हिरसू हैं चाहत हैं ,
दूजे को छोड़ करौं वाही की चाकरी !
*
देखि जलपान ऊ बिराइ मुख कहत- रहा ,
पापा को भर-पलेट इत्ता -सा हमका !
बिटिया तो ऊ सेऊ चारि हाथ आगे अहै ,
देखन में लागत हैं दोऊ छटंका-सा !
*
अपने हसबेंड जबै टूर करि आवत तब
कित्ते परकार की रसोई बना लेती हैं ,
अउर हमलोग इकल्ले रहि जात तबै
दार-रोटी राँध देति कैसे टरकौती हैं !
*
अभै कल ही तो नहाय के निकरि आई ,
कमरा में जाय पहिरौंगी साड़ी नीक से !
बाहर खड़ो पूत आँखे तरेर लाग '
माँ ली जला कपरा पहिन के आऊ थीक छे !
*
बित्ता भर छोरा बनियान भर पहिने खड़ो
टोक रह्यो कइस मैं जोर से हँसी बड़ी !
मार खिसियाय जोर-जोर रोये लाग ,
और अपने सपूत की बात जब पता पड़ी !
*
नेकर तो पहिन, काहे परेसान होत यार ,
रोना बेकार तेरी बात कहाँ आती हौ !
बेटा निचिन्त जाय बहनी के संग खेल ,
तेरी माय देखिबे को हौं ही इहाँ काफ़ी हौं !
*
बस अब ढक्कन दै कटुरदान रख देत ,
आगे कुछु बोलन -बतान काहे को करी !
अरे मोर भैया ,इत्तो बहुत बताय दियो
घर-घर की बात ई तो सबै जानबे करी !
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सोमवार, 16 नवंबर 2009

चुप्प रहि लेत हौं !

बिटवा को माय ने बिगारि दियो कइस
दुइ बच्चन को बाप ह्वै छटूलो बनो जात है !
का कहै मरद जात कहै खिसियाय जात ,
आपुनी जो बात होय मिरची लगि जात है !
*
पेट नाहीं भरत तो कहूँ मन कहाँ ते लगे
भइया के बुलाये जबै मैके चली जात है ,
देख लेओ ढंग हम अभै दिखलाय देत
अम्माँ के सामैं और सिर चढ़ि जात हैं
*
मारे जल्दी के गरम चाय में मूँ डाल दियो
सासू देख लीन मुस्काति है बहुरिया
कइस चाय दई वाको मुँहै मार जरौ जाय ,
पलेट में उँडेल ठंडाय दे बहुरिया !
*
पियाला की चहा तो पलेट में उँडेल दई ,
भागि आई उहाँ ते तुरंत सासु यू न कहें ,
फूँक मार-मार के पियाय दे बहुरिया !

हमको तो दफ़तर जाये का देर होइ जाई ,
अभै तो नहाय का है .काहे ना नहात हो ?
काहे से कि गमछा किसउ ने कहूँ डारि दियो ,
तुरत ना पोंछे हमका ठंडी लगि जात हौ !

गमछा तो लाय के थमाय दीजो बाद में
पहिल ताता पानी पहुँचाय दे बहुरिया ।
*
गमछा थमाय भागि आई कहूँ कहि न दें ,
साबुन लगाय अन्हबाय दे बहुरिया ।

बड़ी देर लागि तहाँ झांकेउ न कहें न कहूँ
उहका तेल-बुकवा लगाय दे बहुरिया !
एतन में कान सुन्यो हमरी बुस्सट्ट कहाँ
दौरि घबराय धरि दीन्ह और भागि आये

कहूँ सास बोलि उठें हमका तो जोर परी
बटन खोलि वाको पहिराय दे बहुरिया !
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थारी खाना दियो आपै खालिंगे बैठि
हम तो दूर बैठि के अगोरत रसुइया ,
दार में नोन थोरो फीको है ,हम लाय दियो
दारि देउ नेक तुहै हमरी कटुरिया
हम समुझायो हमका कइस अंजाद परी
या को सबाद तुम्हें आपुनो हिसाब करि
*
एतन में सासु माय बोलि परी काहे नाहिं
नेक नोन डरि के मिलाय दे बहुरिया !
चुटकी भर नोन डारि भागि आये झट्ट सानी
उनको का ठिकानो कहै  मो ही सो कहें लाग
कौर कौर करके खबाय दे बहुरिया !
*
मर्दुअन के संगे सनीमा देखि आये जौन
मोर पूत हाय मार कैसो थकाइ गा ,
आँखिन में नींद भरी कैसी झुकाय रहीं .
जाके तू बिछौना बिछाय दे बहुरिया !
चट्ट पट्ट भागि आई सासु माँ इहै न कहैं
लोरी गाय-गाय के सुबाय दे बहुरिया
*
ई लिख ततैया केर छत्ता में हाथ दियो
देखि लीजो दौरि-दौरि आय डंक मरिहैं
बिलैया के जैसे खिसियाय नोचें खंबन का,
लरिकन का जत्था खौखियाय दौरि परिहै ,

लिखि कै धर्यो है ,दिखावन की हिम्मत नाहिं,
जाही से परकासन की गुस्ताखी नाहीं करिहौं
केहू के चिढ़ाबो नाहीं ,थोरो सो विनोदभाव
नाहीं आच्छेप मैं साखी दै कहत हौं
*
काटन को दौरि जनि परे इहां पुरुस वृंद
तासे पहिले ही हौं तो माफ़ी मांगि लैत हों !
लंबी है गाथा सासु-माँ तुम्हार पुत्तर की
आगे कबहुँ कहिवे आज चुप्पै रहि लेत हौं !
*

गुरुवार, 12 नवंबर 2009

लोक-रंग -

मुँह टेढा लिये खिड़की पे आ गया ,
मेरे कमरे में चाँद लगा झाँकने !
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भोर बोला था कागा अटारी पे ,
दूध उबला था चूल्हे की मुँहाड़ी पे ,
मैंने सोचा ये,मैं ही भरमा गई ,
एक बादल सा दिख गया पहाड़ी पे !
फूल बगिया में हँसी गुल बकावली ,
और बेला महक गया रात में !
*
पिया पिया बोल गया क्या पपीहरा ,
जिया कैसी वियाकुल विथा घिरा ,
आँख देख रही दूर कहीं जाने क्या ,
कहीं विरही की बाँसुरी ने सुर भरा !
राग भीतर कचोट सी जगा गया ,
चार बूँदें छलक आईं आँख में !
*
फिर खटकी थी कुंडी दुआरे की ,
और बत्ती जली ओसारे की !
सेत केसन में लाली सिन्दूर की ,
बिंदिया माथे अठन्निया अकार की ,
सास दे रहीं 'असीस पूत चिर जियो ',
मूछोंवाले ससुर जी भी साथ में !
*
पास आ रही लो, चलने की आहटें ।
और पास ,और पास, और पास हो !
रात जादू बिखेर रही सामने ,
आधे आंगन की चाँदनी उजास हो !
आँख मूंदे पड़ी मैं चुपचाप ही,
बैरी कँगना खनक गया हाथ में !

बुधवार, 4 नवंबर 2009

नचारी -ओ,नटवर

दुनिया के देव सब देवत हैं माँगन पे ,
और तुम अनोखे ,खुदै मँगिता बनि जात हो !
अपने सबै धरम-करम हमका समर्पि देओ ,
गीता में गाय कहत, नेकु ना लजात हो !
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वाह ,वासुदेव ,सब लै के जो भाजि गये,
कहाँ तुम्हे खोजि के वसूल करि पायेंगे !
एक तो उइसेई हमार नाहीं कुच्छौ बस ,
तुम्हरी सुनै तो बिल्कुलै ही लुट जायेंगे!
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अरे ओ नटवर ,अब कितै रूप धारिहो तुम ,
कैसी मति दीन्हीं महाभारत रचाय दियो !
जीवन और मिर्त्यु जइस धारा के किनारे खड़े,
आपु तो रहे थिर ,सबै का बहाय दियो !
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तुम्हरे ही प्रेरे, निरमाये तिहारे ही ,
हम तो पकरि लीन्हों तुम छूटि कितै जाओगे य़
लागत हो भोरे ,तोरी माया को जवाब नहीं,
नेकु मुस्काय चुटकी में बेच खाओगे !
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एक बेर हँसि के निहारो जो हमेऊ तनि ,
हम तो बिन पूछे बिन मोल बिकि जायेंगे !
काहे से बात को घुमाय अरुझाय रहे ,
तू जो पुकारे पाँ पयादे दौरि आयेंगे !