बुधवार, 28 अक्तूबर 2009

चंदन के फूल

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चँदन केर बिरवा मइया तोरे अँगना
कइस होई चँदन क फूल !
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कनिया रहिल माई बाबा से कहलीं ,
लेइ चलो मइया के दुआर !
केतिक बरस बीति गइले निहारे बिन
दरसन न भइले एक बार !
हार बनाइल मइया तोहे सिंगारिल ,
चुनि-चुनि सुबरन फूल !
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जइहौ हो बिटिया, बन के सुहागिनि ,
ऐतो न खरच हमार ,
आपुनोई घर होइल आपुन मन केर
होइल सबै तेवहार !
बियाह गइल , परबस भइ गइले हम ,
रे माई तू जनि भूल !
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ना मोर पाइ धरिल एतन बल ,
ना हम भइले पाँखी !
कइस आइल एतन दूरी हो
कइस जुड़ाइल आँखी !
कोस कोस छाइल गमक महमही ,
पाएल न चँदन क फूल !
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आपुनपो लै लीन्हेल गिरस्थी
अब मन कइस सबूरी !
चँदन फूल धरि चरन परस की -
जनि रह आस अधूरी !
विरवा चँदन ,गाछ बन गइला
मइया अरज कबूल !
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