मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

ठेल रहे बेकार

*
दस-दस दिन पहले यहाँ दे-दे धक्का मार,
चले जा रहे बरस को,ठेल रहे बेकार !
इत्ते दिन बीते जहाँ ,सबर करो कुछ और
दिन तो पूरे करेगा बेचारा लाचार !
*
थोड़े दिन की बात है , अभी समय है शेष
अपने आप खिसक रहा ,फिर क्यों खींचो केश ,
जाते इस मेहमान की कर लो ख़ातिर और ,
हो सकता कुछ और रंग दिखला दे अवशेष !
*

1 टिप्पणी:

मनोज कुमार ने कहा…

'वाह...वाह... बहुत ही सुन्दर सांकेतिक अभिव्यक्ति
हमारे मिथिलांचल में एक कहावत है,
"गए माघ उनतीस दिन बांकी...!"
धन्यवाद !!