सोमवार, 12 जुलाई 2010

चटखारे -

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जा रही पड़ोसन के घर मैं पर-चर्चाओं का रस पाने ।
अपने ही गली -मोहल्ले की कुछ मज़ेदार ख़बरें लाने !
मुझको न और, उसको न ठौर, गाड़ी खिंचती जाती आगे ,
खबरें दुनिया भर की, इक दूजे बिना भला किससे बाँटें !
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हम इक दूजे के साथ बहुत अपनापन हरदम दरशाते ,
जैसे ही पीठ फिरी, मुख बिचका कर उससे छुट्टी पाते !
अपने को क्या करना भइया, ये दुनिया रंगरँगीली है ,
तुमको बतला दी बात सखी ,आगे की खबर रसीली है!
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देखना, भागनेवाली है कोनेवाले घर की लड़की ,
गुप्तन की झड़प बहू से- ऊपर ही है मेरी तो खिड़की !
दो दिन से महरी गायब है वर्मा घर में झाड़ू देते
वर्माइन ,मुँह लपेट लेटीं ,वे बेचारे बर्तन धोते !
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दीवारों के भी कान, नाम मत ले देना मेरा बहना !
मैंने तुमसे कह दिया किन्तु तुम और किसी से मत कहना !
हम दोनो एक दूसरी की असलियत जानती हैं सारी ,
इसलिये सामने सदा साथ देते रहने की लाचारी !
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दुनिया भर की पंचायत का जिस दिन न स्वाद मिल पाता है
रातों को नींद नहीं आती रह-रह कर पेट पिराता है !
भोजन में गरम मसाले से आ जाता जैसे स्वाद नया ,
जितने मुहँ उतनी बातें, जुड़ जाता हर बार प्रवाद नया !
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हमको तो शौक यही भैया चीजें स्वादिष्ट बनाने का ,
चटपटी मसालेदार बना ,चटखारे लेकर खाने का !
फिर नमक-मिर्च के साथ कान में औरों के पहुँचाते हम ।
रस का आनन्द बाँट कर सबको परम शान्ति -सुख पाते हम !
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2 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

बहुत सुन्दर

निर्मला कपिला ने कहा…

हमको तो शौक यही भैया चीजें स्वादिष्ट बनाने का ,
चटपटी मसालेदार बना ,चटखारे लेकर खाने का !
फिर नमक-मिर्च के साथ कान में औरों के पहुँचाते हम ।
रस का आनन्द बाँट कर सबको परम शान्ति -सुख पाते हम !
वाह जी फिर तो बच के रहना चाहिये। आभार।