*
नैहर की सुधि आई, हो गंगिया नैहर की सुधि आई !
बिछुड़ गईं सब बारी भोरी !
संग सहिलियां आपुन जोरी
ऊँचे परवत जनमी काहे नीचे बहि आई !
*
उछल-बिछल, बल खाइत ,विरमत खेलत आँख-मिचौली
वन घाटिन में दुकि इठलाइत ,खिलि-खिल संग सहेली
नीर भरी छल-छल छलकाइत,
पल-पल मुड़ि-मुड़ि देखति .
बियाकुल लहर हिलोरत पल पल कइसन समुझाई !
*
परवत पितु की गोद ,हिमानी आँचल केरी छाया ,
इहाँ तपत तल ,बहत निमन मन सहत,छीन भई काया .
सिकता सेज ,अगम पथ आगिल,
नगर-गाम वन अनगिन ,
गंगिया री अति दूर समुन्दर कइसन सहि पाई !
*
नैहर की सुधि आई, हो गंगिया नैहर की सुधि आई !
बिछुड़ गईं सब बारी भोरी !
संग सहिलियां आपुन जोरी
ऊँचे परवत जनमी काहे नीचे बहि आई !
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उछल-बिछल, बल खाइत ,विरमत खेलत आँख-मिचौली
वन घाटिन में दुकि इठलाइत ,खिलि-खिल संग सहेली
नीर भरी छल-छल छलकाइत,
पल-पल मुड़ि-मुड़ि देखति .
बियाकुल लहर हिलोरत पल पल कइसन समुझाई !
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परवत पितु की गोद ,हिमानी आँचल केरी छाया ,
इहाँ तपत तल ,बहत निमन मन सहत,छीन भई काया .
सिकता सेज ,अगम पथ आगिल,
नगर-गाम वन अनगिन ,
गंगिया री अति दूर समुन्दर कइसन सहि पाई !
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7 टिप्पणियां:
परम आदरणीया प्रतिभा जी
प्रणाम एवम् मंगलकामनाएं !
इतना सुंदर गीत ! आहाहऽऽ …
क्या प्रवाह है ! कितने सुंदर शब्द ! … और हृदय में सीधे उतर जाने वाले भाव !
नैहर की सुधि आई, हो गंगिया नैहर की सुधि आई !
बिछुड़ गईं सब बारी भोरी !
संग सहिलियां आपुन जोरी
ऊँचे परवत जनमी काहे नीचे बहि आई !
जी करता है गाता ही जाऊं …
आभार स्वीकारें ऐसी मनभावन रचना के लिए !
~*~नव वर्ष २०११ के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आज अचानक तीन-तीन ब्लागों पर आपकी टिप्पणी देख बहुत प्रसन्नता हुई.मैं तो समझ रही थी कि आप भी यों ही चलते हुए निकल जाएँगे.आभारी हूँ !
और गा रहे हैं आप तो हमें भी उन रुपहले स्वरों में अपने शब्द सुनने का आनन्द पाने दीजिये .आशा है उपकृत करेंगे.
bahut sunder bhav
dil mai sama gyi
bahut sunder rachna
kabhi mere blog par bhi aaye
www.deepti09sharma.blogspot.com
सुन्दर गीत
आंचलिक पु
ट से और मधुरता आ गई है
न जाने क्यों, पर हर बार आपका कोई न कोई ब्लॉग मुझसे छूट ही जाता है।
मेरी स्मरणशक्ति पर्याप्त नहीं है संभवतः,अनुसरण श्रेयस्कर है अब।
वन घाटिन में दुकि इठलाइत ,खिलि-खिल संग सहेली
नीर भरी छल-छल छलकाइत,
पल-पल मुड़ि-मुड़ि देखति .
सुन्दर ताल है इन पंक्तियों में, सोंधी बयार सा है यह गीत। भूमि के और निकट ले जाने का, इस लोक-गीत का, इस परंपरा को इस गौरव के साथ जीवित रखने का धन्यवाद कहूँ तो बिलकुल भी पर्याप्त न होगा।
आभार यह सब साझा करने का।
पीछे का सब पढना है।
सादर
लोकगीतों की परंपरा को प्राणवान करते हुए आपके गीत के बोल सहज ही हृदय में उतर गए !
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