बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

विवाह गीत - बन्ना

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ठाड़े रहियो बनरा ओही गली के किनारे पे
गौरा पूजन हम चौरे पे जइबे ,भौजी के सखियन के साथ ,
पूजन की थारी के रोली अखत धर, तोही का मँगिबे जनम सात,
मिसरी-मखाने परसाद धरि जइबे ,
ठाड़े रहियो ओहि मठिया के पिछाड़े पे
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माँगन सुहाग भरभुजिन के जइबे ,सखियन के गीत की बहार
अमर सिंदूर का असीस लेइ आइबे तौन होई मंगलचार
नीम तरे चौतरा पे नेक बिलमइबे ,
ठाड़े रहियो बनरा, वा पान-फूल वारे के
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कुंकुमपत्री धरि के गनेश पहिल पुजिबे,कोई विघन ना होय
बारी कुँआरी ले सातों ही फेरे ,अचल सुहागिन होय
आँचल असीस भरे ओ ही गैल जाऊँगी
अकेल ठाड़े रहियो बनरा, बाहर के ओसारे पे
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दूब-तेल पूजिवे ,हलदी की छींट डारि ,जइबे माँ के दुआर
उनके परस रूप चढ़े सवायो ,पूरे मन- कामना हमार
कनिया अरघ-जल सींच रही मारग, माथे सुहागिनी की छाँय
देखे रहियो ऊपर के छज्जा के मुँड़ारे से.
ठाड़े रहियो ...
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3 टिप्‍पणियां:

Satish Saxena ने कहा…

अरे वाह !
बहुत बढ़िया ...गौर पूजन का बेहतरीन शब्दचित्र ही खिंच दिया है आपने ! शुभकामनायें !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत-बहुत बधाई!

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

वाह क्या बात है. बहुत सुन्दर बन्ना.