रविवार, 21 नवंबर 2010

बहिनी का भाग.

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तेरी कमाई में ओ,मेरे भइया कुछ तो है बहिनी का भाग ,
इक नया पैसा हजार रुपैया में ,बस इतना कर दे निभाव ,
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भौजी को गढ़वा हे हीरे के गहने ,कांच की चुरियाँ मोय ,
मइके इतना ही मान बहुत रे ,तेरी तरक्की होय.
बरस में दो दिन पाऊँ वो देहरी ,इतना सा मन का चाव.
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ये ही बहुत रे ,चिठिया पठा दे आए जो तीज-तेवहार
मइया औ बाबा किसके रहे रे ,भइया से मइका हमार .
फिर तो ये मेरा, तेरा वही घर, जीवन का ये ही हिसाब.
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माँ जाए भाई सा दूजा न कोई ,दरपन सा निहछल भाव .
भइया की भेंटें ऐसा लगे मइया पठवा दिहिन है प्रसाद,
सुख हो या दुख,गए मौसम के, रुख पर तेरा न बदला सुभाव .
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बचपन के सुख को जी लूँगी फिर से बाँधूँगी यादों की गाँठ ,
संबल बनेंगी रँग से भरेंगी ,जब भी जिया हो उचाट .
देखूँ तुझे सियरावे हिया, लागे बाबुल की छू ली छाँव .
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गुरुवार, 11 नवंबर 2010

बदरा पे धूप

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देसवा की धरती पे पक रहे अमवा
गूंज रही कोयल की कूक ,
बदरा पे धूप सजे मनवा माँ हूक उठे ,
बिरही जियरवा टूक टूक!
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खेत धन-लछमी ,अँगनवा में गोरिया ,
बाली उमरिया तहू पे लड़कौरिया .
चुरियन की खनक संग अंग में उछाह
दुई हाथन पछोरे भरि सूप !
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अबकि बार सारो निपाट देई करजा ,
सहर लै जाइ के घुमाइ लाई ओहिका ,
नैनन में चाव भरे सपन सजाय
दमक-दमक नई चूनर में रूप
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पी-पी पपीहरा गुँजाइ रह बनवा ,
जागत हिलोर उमगात मोर मनवा ,
ढमक ढोल बाजे ,मंजीर खनखनावे,
बजे चंग नेह-रंग रहे डूब !
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