गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

बाउल गीत

*
तेरे रंग डूबी, मैं तो मैं ना रही !
*
एक तेरा नाम ,और सारे नाम झूठे,
ना रही परवाह जग रूठे तो रूठे
सुख ना चाहूँ तो से ,ना रे, ना रे ना, नहीं !
*
एक तु ही जाने और जाने न कोई,
जाने कौन अँखियाँ जो छिप-छिप रोईं
एक तू ही को तो , मन और का चही !
*
बीते जुग सूरत भुलाय गई रे ,
तेरी अनुहार मैं ही पाय गई रे .
पल-छिन मैं तेरे ही ध्यान में बही !
*
एक खुशी पाई तोसे पिरीतिया गहन ,
तू ना मिला, मिटी कहाँ जी की जरन ,
तेरे बिन जनम, बिन अगन मैं दही !
*
कि मैं झूठी, कि ये वचन झूठा ,
जा पे सनेह सच, मिले सही क्या .
रीत नहीं जानूँ, बस जानूँ जो कही !
*

रविवार, 21 नवंबर 2010

बहिनी का भाग.

*
तेरी कमाई में ओ,मेरे भइया कुछ तो है बहिनी का भाग ,
इक नया पैसा हजार रुपैया में ,बस इतना कर दे निभाव ,
*
भौजी को गढ़वा हे हीरे के गहने ,कांच की चुरियाँ मोय ,
मइके इतना ही मान बहुत रे ,तेरी तरक्की होय.
बरस में दो दिन पाऊँ वो देहरी ,इतना सा मन का चाव.
*
ये ही बहुत रे ,चिठिया पठा दे आए जो तीज-तेवहार
मइया औ बाबा किसके रहे रे ,भइया से मइका हमार .
फिर तो ये मेरा, तेरा वही घर, जीवन का ये ही हिसाब.
*
माँ जाए भाई सा दूजा न कोई ,दरपन सा निहछल भाव .
भइया की भेंटें ऐसा लगे मइया पठवा दिहिन है प्रसाद,
सुख हो या दुख,गए मौसम के, रुख पर तेरा न बदला सुभाव .
*
बचपन के सुख को जी लूँगी फिर से बाँधूँगी यादों की गाँठ ,
संबल बनेंगी रँग से भरेंगी ,जब भी जिया हो उचाट .
देखूँ तुझे सियरावे हिया, लागे बाबुल की छू ली छाँव .
*.

गुरुवार, 11 नवंबर 2010

बदरा पे धूप

*
देसवा की धरती पे पक रहे अमवा
गूंज रही कोयल की कूक ,
बदरा पे धूप सजे मनवा माँ हूक उठे ,
बिरही जियरवा टूक टूक!
*
खेत धन-लछमी ,अँगनवा में गोरिया ,
बाली उमरिया तहू पे लड़कौरिया .
चुरियन की खनक संग अंग में उछाह
दुई हाथन पछोरे भरि सूप !
*
अबकि बार सारो निपाट देई करजा ,
सहर लै जाइ के घुमाइ लाई ओहिका ,
नैनन में चाव भरे सपन सजाय
दमक-दमक नई चूनर में रूप
*
पी-पी पपीहरा गुँजाइ रह बनवा ,
जागत हिलोर उमगात मोर मनवा ,
ढमक ढोल बाजे ,मंजीर खनखनावे,
बजे चंग नेह-रंग रहे डूब !
*

बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

विवाह गीत - बन्ना

*
ठाड़े रहियो बनरा ओही गली के किनारे पे
गौरा पूजन हम चौरे पे जइबे ,भौजी के सखियन के साथ ,
पूजन की थारी के रोली अखत धर, तोही का मँगिबे जनम सात,
मिसरी-मखाने परसाद धरि जइबे ,
ठाड़े रहियो ओहि मठिया के पिछाड़े पे
*
माँगन सुहाग भरभुजिन के जइबे ,सखियन के गीत की बहार
अमर सिंदूर का असीस लेइ आइबे तौन होई मंगलचार
नीम तरे चौतरा पे नेक बिलमइबे ,
ठाड़े रहियो बनरा, वा पान-फूल वारे के
*
कुंकुमपत्री धरि के गनेश पहिल पुजिबे,कोई विघन ना होय
बारी कुँआरी ले सातों ही फेरे ,अचल सुहागिन होय
आँचल असीस भरे ओ ही गैल जाऊँगी
अकेल ठाड़े रहियो बनरा, बाहर के ओसारे पे
*
दूब-तेल पूजिवे ,हलदी की छींट डारि ,जइबे माँ के दुआर
उनके परस रूप चढ़े सवायो ,पूरे मन- कामना हमार
कनिया अरघ-जल सींच रही मारग, माथे सुहागिनी की छाँय
देखे रहियो ऊपर के छज्जा के मुँड़ारे से.
ठाड़े रहियो ...
*

गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

बटोहिया -

*
राह तीर पनघट पे गागर को धोय माँज,
सीस साधि इँडुरी ,जल धारि पनिहारिया
पंथी से पूछि रही कौन गाम तेरो ,
तोर नाम-काम कौन, कहाँ जात रे बटोहिया.
*
जनम से चलो जात ,मरण की जातरा पे,
मारग मैं धूप-छाँह आवत-है जात है !
कोई छाँह भरो थान देखि बिलम लेत कुछू ,
कोई थान ,घाम गात ताप अकुलात है !
बेबस चलो जात कोऊ रोके को दिखात नाहीं
मारग पे जात लोग साथ रे बटोहिया !
*
जाने कहां ते ई धरती पे आय पड़्यो
जाने कइस ,जाने कहाँ ,जाने काहे जानो नाहिं
कोऊ नाहीं हुतो, कोऊ जान ना पिछान
खाली हाथ रहे दूनौ आप हू को पहचानो नाहिं
मारो-मारो फिरत हूँ दुनियां की भीर
चलो जात हूँ अकेलो,  कहात हूँ बटोहिया !
*
साथ लग जात लोग ,और छूट जात हैं
नाम मोय नायं पतो ,लोग धर दीनो है
जातरा में पतो कौन आपुनो परायो कौन
सुबेसे चलो हूँ संझा तक गैल कीन्हों है ,
पूछति है बार-बार कौतुक से भरी नार
पथ को अहार ,कहा लायो रे बटोहिया ,
*
माथे धरी पोटली में धर्यो करम को अचार ,
रोटी तो पोय के इहाँ ही मोहे खानी है ।
मोह-नेह भरे चार बोल तू जो बोल रही
ताप और पियास हरि जात ऐसो पानी है
आगे को रँधान हेत करम समेट मीत,
बाँध साथ गठरी में गाँठ दै बटोहिया !
*
राह अनबूझी सारे लोग अनजाने इहाँ ,
आय के अकेलो सो परानी भरमात है
वा की रची जगती के रंग देखि देखि मन
ऐसो चकियायो अरु दंग रहि जात है !
भूलि गयो भान काहे भेजो हैं इहाँ पे ठेल
ओटन को लाय के कपास रे बटोहिया
*
उहै ठौर जाए पे पूछिंगे कौन काम कियो ,
सारो जनम काटि कहो लाए का कमाय के
घड़ा जल पूर सिर , पनिहारी हँसै लागि,
बात को जवाब कइस देहुगे बनाय के .
धोय-माँज मन की गगरिया में नेह पूरि
पल-पल सुधि राख जिन पठायो रे बटोहिया
*

बुधवार, 1 सितंबर 2010

श्री कृष्ण-जन्माष्टमी पर - कृष्ण का न्याय.

*
गोरस की हाँडी कबहुँ बोरसी पे चढी नायँ ,तीज-त्यौहार हू कढ़ाही रही छूछ ही,
एकै बार पेट तो भराय दिन भरै माँझ रात पेट बाँधि काट लेव चुपैचाप ही ,
कइस दिन बिताय रहे जाके जगदीस मीत.साँच हैकि झूठ ही बनाय के सुनायो है ,
मीत हैं तो मिलबें की चाह नाहिं दीखी कबहुँ कैसो कठोर है करेजो जौन पायो है
*
कौन भाँ ति सामनो करौंगो हौं दरिद्र -दीन बे तो द्वारका के नाथ सबै विधि लायक हैं
खाली हाथ को हिलात जाय ठाड़ होऊँ,इहाँ भेंट को कुछू न पास कोऊ न सहायक है
बाम्हनी ने चार मुठी चिवरा उधार माँगि ,कपरा की पुटरी में दीन्ह गाँठ बाँधि के
देखियो सँभारिहौ ई बिखरि न जाय कहूँ कपरा पुरान, तौन राखि लीजो साधि के
*
तुम्हरे गुरु-भाई बे द्वारका के धीस /ब्योहार इहैं उहाँ कुछू उहाँ भेंटिबे को चाहिजे ,
आगे को हाल जानि ह्वैहैं सहाय ,पिया आज तो उहाँ की गैल तुरतै ही जाइए .
*********
भुज भरि भेंटे लाइ पाट पे बिठायो ,नीर नैन भरि आयो देखि दीन दसा मीत की ,
पहिले ही आय, के उरिन होत एते दिन काहे को लगाय बलिहारी परतीत की
लाजन के मारे कांख दाबे दुरावत हैं ,भेंट नहीं पावत हैं भुज भरि नेह सों,
खींचि लियो हाथ थाम लीन्हीं पुटरिया, ई घट-घटकी जाने बात, इनसों छिपात को
*
वह रे सुदामा कइसी नियत तुम्हार, जासों नियति तुम्हार आज ई दिन दिखायो हैं.
उहै भूखवारी मेरो भाग खाए की कसर चुकायबे को लै के पुटरिया आज मोर मीत आयो है
काहे न देत जौन भेंट है हमार ,इहै चाउर के कारनै हम राह देखिबे करी,
अब तुम निपाट दीन व्याज और मूल विधना हू ने तुम्हार ,सबै भर पाई करी ,
*
दियो गुरु माई, सारो चबेना सपोटि गए, भौजी के चिऊरा हू देत नहीं लालची ,
पहले उधारवारो करजा चुकाइ देहु ,पाछे मोर-तोर बात प्रीत-व्योहार की .
अन्न-धन-धाम जौन अटके परे है इहै बाधा रही एक आजु पार करो भाव सों
खींचि लई चिऊरन की पोट लै उछाह भरे भरि-भरि मूठी ,बे चबाइ रहे चाव सों ,
*
सकिलि आईँ रुकमिनी ,अकेल ना तुम्हार सबै, हम हू ना छोड़ी जौन है हमार भाग के
छीनि लई ,थोर-थोर रानिन ने बाँट लई ,हमारो जो अहै अब राखौंगी साधि के
हाय गजब ,एक-एक मूठी पे एक लोक वारत हैं बाम्हन पे मीचि आँखि आपुनी,
अइसे लीन भए और सबै बिसराय दियो हम जो इसारे समुझात रहे ना सुनी .
*
मान-पान ,भयो सबै भाँति सतकार पाइ बिदा भे सुदामा ,आय ठाड़ भए द्वार पे ,
अब ना लगायो देर दुख ना उठायो मीत , अंतर की बात मोंसों बाँटि लियो आय के .
समुझै न विप्र कुछू चकियायो देखि रह्यो ,मोहन की लीला ,को पार कहाँ पाइये ,
बिदा भे सुदामा पछतात जात मारग में काहे मेहरारू की बातन में आइगे !
*

पथ की थकान ई पुरानो पदत्रान, चलतई में घिसानो मार चुभो जात पायँ में
चिउरा उधार के चुकाइबे परेंगे ,और हाल ई मिलाप के ऊ पूछिंगे गाँव में !
बावली है बाम्हनी ,इहाँ की गैल ठेलि के लगाइ आस बैठी जिमि भाग फिरि जाइंगे
लागी जा की आस रही, कुछू मिलो नायँ घरनी की बात मानि जाने काहे इहाँ आय गे ,.
*
जातइ ,करारी डाँट ओहिका लगावत हौं ,राज-पाट लायो हूं सो रखि ले सम्हालि के
थोरो सो आपुनो उठाय सिर जीवत जो ,सारो लै डारो द्वारका की गैल डारि के .
करत बिचार देखि रहे नए साज-बाज ,कतहूँ ना दिखात रहे जीरन अवास जो
हाय-हाय भूलि पंथ , फिरै उहाँ आय गयो ,अब तो चार चाउर ही भेंट नहीं पास हो,
*
विप्र पछिताय रह्यो ,कहूँ निस्तार नाहिं,कान भरमात जइस टेरति है बाम्हनी
अपुन छिपाय मुँह दुआरे से लौटि चले ताही पल दुपट्टा गहि खींचि लियो भामिनी .
सारी की चींट फारि चोट आँगुरी पे बांधी , द्रौपदी को रिन उन चुकायो केहि भाँति सों ,
ब्याज सहित मूल, जो चबेना को वसूल करि आपुनो ही भाग ,राज बाँटि दियो चाव सों!
*

मंगलवार, 24 अगस्त 2010

भारत माने इंडिया

*(यह प्रवासी बच्चों की ओर से )
हमको भारत क्यों भाता है ,(भारत माने इंडिया )
हमें इंडिया क्यों भाता है !
*
दादी-दादा -नानी-नाना ,बुआ और दो चाचा ,
फूफा ,मामा-मामी, भाभी, जीजा ,मौसी मौसा
यहाँ आंटी-अंकल तक व्यवहार सिमट जाता है !
*
दीपक ले दीवाली आती,रंग लुटाती होली ,
लोड़ी पर भर जाती अपनी भुने अन्न से झोली ,
गर्मी में आ मानसून पानी बरसा जाता है.
*
रक्षाबंधन सारी बहने लातीं सुंदर राखी ,,
बड़े प्यार से मीठा मुँह कर भेंट हमारी पातीं ,
कृष्ण -अष्टमी झाँकी में सबने प्रसाद बाँटा है .
*
नीम डाक्टर पेड़ खड़ा है अपने दरवाजे पर
पीपल की ठंडी छाया में बैठो सत्तू खा कर
उनकी छाया रोग एलर्जी झट से भग जाता है
*
चाँद निकलता था छत पर जा कर देखा ध्रुव तारा ,
सप्तऋषि के सातों को हमने ले नाम पुकारा .
इन सबका हम सबसे ही जाने कब का नाता है .
*
शादी मुंडन ,गोद भराई या फिर कहीं रहे सगाई ,
केसरवाला दूध पियो या घुटी हुई ठंडाई ,
नाच और गानों में ही सप्ताह निकल जाता है ,
*
मिले ईद पर सेवइयाँ औ'बैसाखी पर हलवा ,
दुर्गापूजा में नाचेगा झूम-झूम कर ललुआ ,
साँझ पड़े तुलसी चौरे पर दीपक जल जाता है !
*

बुधवार, 14 जुलाई 2010

कृ्ष्ण-भक्ति का फ़ण्डा

*
नहीं समझ में समा रहा है भगत तुम्हारा फ़ण्डा !
गंगा जल से धो कर जैसे होय निरामिष अंडा !
*
मरद-जात है या मेहरारू पता नहीं क्या चक्कर !
कुछ न बताये कोई, सारे चुप रह जाते हँसकर !
सब्ज़ीवाले सच सच बतला ,घुइयाँ है या बंडा !
*
धरी उतार कड़क वर्दी , पहनी घाघरिया चोली ,
पाँव महावर, रँगे होंठ , पर चुगली करती बोली !
बजा तालियाँ ठुमक ठुमक कर नाच रहे हैं सण्डा !
*
गलियों का हुड़दंग देख कहती थीं मेरी नानी ,
अब समझी हूँ अर्थ और तुक, जो थी बात पुरानी - 3
'घर चून न बाहर कंडा ,होरी खेलें संड-मुसंडा !'
*
कितना कुछ पाया जीवन में गई न मन की तृष्णा,
कुण्ठित मन में विकृत लालसा मुख पर कृष्णा कृष्णा.
चेले चाँटी साथ लग गये करने वाग्वितण्डा !
*
गीता- ज्ञान भाड़ में, ऐसी तैसी कर ड्यूटी से ,
सब कुछ छोड़ मुरीद बन गये मधुबन की क्यूटी के !
कुछ भी कह लो ध्यन लीन हैं ,बगुला भगत अखण्डा !
*
अंहाँ गोपिका ग्रामवासिनी नवल-किशोरी भोली ,
खेला खाया घाघ चलाये कहाँ नयन से गोली
नहीं अजूबा ऐसा देखा सप्त द्वीप नव खण्डा !
*
रंग रास अब रास आ रहा औरों से क्या नाता ,
जिसको आना हो आये जाये जो होवे जाता !
पीछा छूटे घरवाली से ऐसा करो प्रबन्धा !
*
चनिया चोली चुनरी धारण कर लो सभी सिपहिया
चूड़ी पहन बाँध लो घुँघरू नाचो ताता थैया !
या ग्वाले बन साथ निभाओ लिये हाथ में डण्डा
*
लचका कमर ,लगाते ठुमके , मटकें हाथ नचाकर !
नगर नगर में करे नुमायश दिखला त्रिया चरित्तर!
यहाँ दाल में काला है कुछ , बतला देगा अन्धा !
*
विधि की अनुपम रचना का कैसा मज़ाक यह भद्दा ,
ऊपर से प्रभु-इच्छा बतला और जड़ दिया रद्दा !
घाट-घाट का पानी चक्खा अब चल, बजा मृदंगा !
*
ग्रामर जिसने पढ़ी छोड़ दे नर नारी का चक्कर ,
कामन भी ये नहीं, बहुत संभव, हों न्यूटर जेंडर !
सुनी शिखण्डी की चर्चा पर अब तो प्रकट शिखण्डा !*

सोमवार, 12 जुलाई 2010

चटखारे -

*
जा रही पड़ोसन के घर मैं पर-चर्चाओं का रस पाने ।
अपने ही गली -मोहल्ले की कुछ मज़ेदार ख़बरें लाने !
मुझको न और, उसको न ठौर, गाड़ी खिंचती जाती आगे ,
खबरें दुनिया भर की, इक दूजे बिना भला किससे बाँटें !
*
हम इक दूजे के साथ बहुत अपनापन हरदम दरशाते ,
जैसे ही पीठ फिरी, मुख बिचका कर उससे छुट्टी पाते !
अपने को क्या करना भइया, ये दुनिया रंगरँगीली है ,
तुमको बतला दी बात सखी ,आगे की खबर रसीली है!
*
देखना, भागनेवाली है कोनेवाले घर की लड़की ,
गुप्तन की झड़प बहू से- ऊपर ही है मेरी तो खिड़की !
दो दिन से महरी गायब है वर्मा घर में झाड़ू देते
वर्माइन ,मुँह लपेट लेटीं ,वे बेचारे बर्तन धोते !
*
दीवारों के भी कान, नाम मत ले देना मेरा बहना !
मैंने तुमसे कह दिया किन्तु तुम और किसी से मत कहना !
हम दोनो एक दूसरी की असलियत जानती हैं सारी ,
इसलिये सामने सदा साथ देते रहने की लाचारी !
*
दुनिया भर की पंचायत का जिस दिन न स्वाद मिल पाता है
रातों को नींद नहीं आती रह-रह कर पेट पिराता है !
भोजन में गरम मसाले से आ जाता जैसे स्वाद नया ,
जितने मुहँ उतनी बातें, जुड़ जाता हर बार प्रवाद नया !
*
हमको तो शौक यही भैया चीजें स्वादिष्ट बनाने का ,
चटपटी मसालेदार बना ,चटखारे लेकर खाने का !
फिर नमक-मिर्च के साथ कान में औरों के पहुँचाते हम ।
रस का आनन्द बाँट कर सबको परम शान्ति -सुख पाते हम !
*

रविवार, 4 जुलाई 2010

तेरे माया-राज में

*
मइया, तेरे राज मे चील -बिलौटे, शेर .
खूसट खडे नमन करें ,करते रहें अहेर !
क्या होगा अंजाम इसका बाद में ?
*
टुकडखोर आशीष दें ,पाकर फेंके अंश,
गद्दी सदा बनी रहे ,चले सदा यह तंत्र !
अकल चर रही घास ,तेरे राज मे !
*
करे न कोई काम पा सरकारी नौकरी ,
ये हाकिम -हुक्काम ,चिपके जैसे जोंक री !
सभी कागजी काज, तेरे राज में !

मुख पर राम रचे हुये,दबा बगल में ईंट !
सीना ताने घूमते ,चोर उचक्के ,नीच !
है ईमान हराम तेरे राज मे !

हसरतें --

*बड़ी शिकायत है मुझे बड़ा दुख है ,
पति से कहा मैने -
'माँ-बाप ने कैसा लड़का ढूँढा मेरे लिये!
'क्या देखा तुम में ,तुम्हारी डिग्रियाँ ,नौकरी!
अरे इस सब से क्या मिला मुझे ?
किसी लालू जैसे से ब्याहते तो आज मै भी
कहीं की मुख्यमंत्री होती ! '
*
पति ने बड़ी ठण्डी साँस छोड़ी -बोले -
'मेरी भी हसरत मन-की-मन में रह गई १
तुम जैसी पढी-लिखी बीवी पल्ले पड़ गई १'
'क्या मतलब 'आँखें तरेर कर पूछा मैंने १
बोले-'काश राबड़ी जैसी पत्नी होती ,
जब चाहता रसोई मे घुसा देता
जब चाहता अपनी जागीर का मुख्य-मंत्री बना देता १
जहाँ कहता अक्षर-अक्षर जोड़ दस्तखत करती,
हमेशा मुंह बाए मेरा मुँह तकती !
*
बड़ी कुण्ठित हूं मै ,
सच्ची मैने बेकार पढ़ा-लिखा !
पढ़-लिखकर हमलोग अपनी ही लुटिया डुबोते हैं ,
सोचते हैं , समझते हैं ,रोते हैं!
इसलिए कुछ जानने की
समझने की बूझने की कोशिश मत करो ,
यह तो संज्ञेय अपराध है !
बोलो ,पर बिना समझे-बूझे,
क्योंकि अपना ही राज है १
चिल्लाओ ,चीखो ,छीनो ,झपटो ,मारो-काटो ,
तुम सक्रिय कहाओगे और देश की रेलगाड़ी
फूलन-सुन्दरी की तरह जहाँ चाहोगे रुकवाओगे!
*
जो बड़े को हाँके वही ताकतवर है ,
अक्ल छोटी होती है ,
भैंस बहुत बड़ी.
सौ मूर्खों को एक डण्डे से हांके वही कद्दावर है !
हमारे भेड़-तन्त्र मे एक के पीछे सारा रेवड़ चलता है ,
पीछे-पीठे सारा देश चलता है १
भैंस पर बैठो ,हाँक ले जाओ , छोड़ दो पानी में
और शान से कर्णधार बन ,
जा बैठो देश की राजधानी में !
*

सोमवार, 19 अप्रैल 2010

एक -चित्र

*
भोर भयो ,दुलहिन निकरि गई भुरहरे ही
पति सोवत रहे दिन चढ़े उजारे लौं ।
जेठ ननदोई सबै अंगना बिराज रहे
न्हाय-धोय दुलहिन आय गई रसुइया मां!
*
लाल लाल चुनरी सितारन से टँकी जाकी ,
किरन किनारी की आनन पे छाय रही,
बैठि गई जिठनी के तीर आय चउकी पे
भाल लगी बिंदिया कइस मोहिनी सी डारि रही!
*
कहाँ गयो सारो ननदोई पुकारि रहे
अबहूँ न नींद खुली दिन चढ़ि आयो है
सोयो सो लरिका अँगड़ात- जमुहात भयो
बाहर निकरि अँगना में आय ठाड़ो है !
*
भइया मुँह दबाये हँसैं ,जीजा को अट्टहास
छुटका मुसकाय मौन तकै जात सामुने ,
औंचक सो भौंचक सो समझ न पायो कुछू
ठाड़ो चकरायो कहा रच्यो इहाँ राम ने ।
*
भाभी निकरि आई रसोई से हँसी से भरी-
'कुर्ता पे छाय रहे सेंदुर के दाग रे
अइना में जाय रूप आपुनो निहार लेहु
मुख दिखात घड़ी जइस बारह बजाय के.'
*
गूँजी समवेत हँसी, कमरा में भागि गयो
कौन परे फालतू इहाँ की खुराफात मं
नयो -नयो पति भकुआयो सो रहे चुप्प
छेड़ रहे सिगरे इहाँ तो बात-बात में !
*

शुक्रवार, 26 मार्च 2010

हमको क्या करना

*
हमको क्या करना .
भरने दो उसकी बारी है ,
सही-ग़लत जो हो ,
अपने को क्या फ़र्क पड़ेगा ,
खा-पी ले और सो !
जब हम पर आये देखेंगे ,
व्यर्थ यहाँ फँसना.!
*
हम काहे को पड़ें बीच में ,
औ विरोध झेलें
पड़े बीच में काहे
जिस पर आई वो झेले
जिस करवट से ऊँट रहे
बस दे दो मत अपना
*
कोई बढ़े-चढ़े क्यों आगे ,
दुनिया के चक्कर ,
हज़म न कर पायेगा कोई ,
देगा ही टक्कर .
देख तमाशे सबके ,
बस सिर बचा रहे अपना
*
सबसे मीठा बोलो ,
चाहे सच चाहे झूठा ,
अपना काम निकालो
चाहे टेढ़ा या सीधा .
सारे प्रश्न दफ़ा कर
चाहे जैसे मौज मना
*
कोऊ भी नृप होय ,
हमें का होवेगी हानी ,,
अपनी ढपली बजा,
यही नुस्खा है लासानी

अपना मतलब पुरे ,
और फिर हमको क्या करना!

रविवार, 28 फ़रवरी 2010

नचारी - होरी के हुरंग में..

*
होरी के हुरंग में देखोई सारदा को रूप
सारी सुपेद सारी कइसन रँगाय गई .
पुस्तक के आखरन पे छायो अबीर,
सेत सतदल की पाँखुरी गुलाल सों छिटाय गईं,
*
ढोल बजे ढम-ढम ,मँजीरन की झमक-गमक,
चंदन परि पाँखुरी पलास लिपटाय गई.
पुस्तक बहावन की बात करत रहे ताकी ,
अटपटी बानी पे खुदै बानी रिझाय गईं.
*
बीना के तारन पे बजन लाग लोक- राग ,
सुर की तरंग मंत्र-गान बिसराय गई.
बहिनी पे रंग, आँख फारि देखि रहे संभु,
चूकीं न भवानि ननदी को बोल मारि गईं -
*
'बनी बड़ी कुमारी, कलावती अरु ज्ञानमती .
भइया की भांग लगत बहिनी चढ़ाय गईं .
सतगुन की साधिका ह्वै रहैं अविकारी गिरा ,
माधव मदन ऋतु पाय फगुनाय गईं .'
*
गौरा के बोल सुनि बानी मुसकाय रहीं,
मति मारी गई भौजी की, समुझाय को ,
भइया को देखि सकुचाय के कबूल दियो ,
परतिभा की विनती के हठ के सुभाय को .
*
रंगीन चसमा दै दीठ भरमाई अइस
अविकार सदा मोर उज्जर पवित्रता
कामना पुराय तासों इन्द्रजाल रच्यो इहाँ,
सबै अरुझाय गये ,देखि के विचित्रता
*
जेहि ठौर राजें हंसवाहिनी सरस्वती-माँ
तहाँ प्रतिभात रहे मति की समग्रता
निर्मल-धवल सुश्लोक सदा वरदायिनी हे,
छमिहो हमार दोष तीन लोक अर्चिता !

शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

को बचाय रे

मास्टर ओंकाल्लाल हिन्दी पढ़ावत में,लिखो कुछू और कुछू और बोल जात रहे
लरिका मुसुकायँ देखें दायें और बायें जबै खैनी धरी हथेली पे ताली दे सजाय के

मल्हार राव एक कारों भुजंग सो हो देखत ही बोलत सनीचर सो दिखात है ।
अउर ई मल्हरवा पाठ कबहुँ याद ना करै अकलै में नाहिं वाके घुसति कोऊ बात है

ओंकाल्लाल की खेनी से पियरे हाथ गदगदी गद्दी सम दनादन कूटे जात हैं ।
दाँतन में खैनी दबाय हड़काय रहे गोल-गोल आँखिन मा गुस्सा मिची जात हैं

गोल-मोल देह ,ऊँची धोती पे सलूका फूले गाल सबै लरिकन में ढब्बू जी कहात हैं
अरे हट काला डूँड सनीचर बज्जर मसान मुख से उचारि रहे मार गुस्साय के

झपाक् झापड़ थप्पड़न का को गिनात रौरा मचात हाय हाय ,हाय हाय बप्पा रें
उछल -उछल चीख रहो कूदि-कूदि जात लरिकन में सोर ढब्बूजी सों को बचाय रे

होई का बखानि के

मालवा की धरती की साँवली -सी माटी को सौंधा संग संग हमार डोलत लगे-लगे
नदियन को उहै जल सूखि नहीं पावत हमार नयना में समायो पिरीत पगे !
जीवन को नेह भरि ,आपुनपो देइ करि अन्न से रची ई देह रचना उहै की है
बोल-चाल रीत-भाँत सहज सुभाव अउर निहछल वेवहार की परतीत भी उहै की है ।
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लरिकिन के स्कुलन को टोटा रहे तबै हम पढ़े रहे सदा लरिकन के साथ में ।
सबसे ज्यादा नंबर हमारे ही आवत,मानो ना तो पूछ आउ जाइ आस-पास में
लरिकिन के पढ़न को परबंध कहां रहे तबै घरै बैठ जाति पास हुई दर्जा पाँच में
हम तो सातवी किलास पे ही परवेस लियो जामेटरी एलजबरा पढ़े सबै का साथ में
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मदन लाल इँगलिस को खींच-खींच बोले जौन मुँह में खटास वाके घुलीघुली जात हौ
एक संग्राम सिंग हरी सिंग से कहे कहत रहे टपक सून्द्री बियाह लावेगो बाद को
भँवर सिंग पैरेलल को कहत रहे प्यारे लाल मुस्किल ह्वै जात संग बैठनो किलास में ।
एक बेर संगरमवा पेड़ तरे खड़ो रहे ,तबै ही ततैयन ने झपट्टा मारि घात में .

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हाय-हाय करि बिलखात भागो चप्पल छोड़ि ,कुरसी के आस-पास कूदै मार चिल्लाय के
मारे दरद मुँह लाल लाल भयो गाल नाक हाथ मूँ पे हू  ततैया डंक छाये के
हाय,हाय,हाय,संगराम बिलखाय ,हरी सिंग छोट भाय कहै कहा करौं माय रे
भागमभाग सब मचाय ,कुछू पावैं ना उपाय तिन्हें कउन समुझाय के कुछू तो बताय रे !
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ततैया सुभाव ,देखे आव नाहीं ताव ,जौन पावे आस-पास डंक मारि तड़पाये रे !
भंवर सिंग दौर पर्यो  कुप्पी उठाय लायो डारि -डारि घासलेट बिलबिलात गात पे
पीर ना पटाय संगराम चिल्लाय बावलो सो नाच कूद रह्यो चैन परे नाहिं रे
दौरि-दौरि लरिकन के झुंड आय छाय, सबै बन्दरन की नाईं झाँकि आँखि फार-फार के
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मास्टर के रोके, कोई रुके नाहिं अँधाधुंध भागे सारे छोरे मार हू ते ना डेराय ही
तीनि लरकिनी ,हमार साथ अउर दुइ जनीं ,परमिला औ'सान्ती रहे उहै किलास की
का करैं रुबास आय , हँसी आय,  भाँत-भाँत छोरे घिरेआसपास के सारे किलास के
केहू भाँति रास्ता बनाय निकरि आये, अउर आपुन घरै घुसे जाय तुरत भागि-भागि के ।
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ई तो एक दिन की कहानी भई ,भइया रे ,
और का बतावैं ,का करिहौ अउर जानि के
कालीसिंध नद्दी और सोनकच्छ कस्बा को
हाल मजेदार पर का होई का बखानि के !