बुधवार, 18 नवंबर 2009

इत्तो बहुत बताय दियो

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घर की पोल खोलिबे से लागति है लाज
पर भैया, तुम पूछे हो ,बताय हमका परी !
बाप-पूत दोनो बड़े हिरसू हैं चाहत हैं ,
दूजे को छोड़ करौं वाही की चाकरी !
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देखि जलपान ऊ बिराइ मुख कहत- रहा ,
पापा को भर-पलेट इत्ता -सा हमका !
बिटिया तो ऊ सेऊ चारि हाथ आगे अहै ,
देखन में लागत हैं दोऊ छटंका-सा !
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अपने हसबेंड जबै टूर करि आवत तब
कित्ते परकार की रसोई बना लेती हैं ,
अउर हमलोग इकल्ले रहि जात तबै
दार-रोटी राँध देति कैसे टरकौती हैं !
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अभै कल ही तो नहाय के निकरि आई ,
कमरा में जाय पहिरौंगी साड़ी नीक से !
बाहर खड़ो पूत आँखे तरेर लाग '
माँ ली जला कपरा पहिन के आऊ थीक छे !
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बित्ता भर छोरा बनियान भर पहिने खड़ो
टोक रह्यो कइस मैं जोर से हँसी बड़ी !
मार खिसियाय जोर-जोर रोये लाग ,
और अपने सपूत की बात जब पता पड़ी !
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नेकर तो पहिन, काहे परेसान होत यार ,
रोना बेकार तेरी बात कहाँ आती हौ !
बेटा निचिन्त जाय बहनी के संग खेल ,
तेरी माय देखिबे को हौं ही इहाँ काफ़ी हौं !
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बस अब ढक्कन दै कटुरदान रख देत ,
आगे कुछु बोलन -बतान काहे को करी !
अरे मोर भैया ,इत्तो बहुत बताय दियो
घर-घर की बात ई तो सबै जानबे करी !
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