सोमवार, 16 नवंबर 2009

चुप्प रहि लेत हौं !

बिटवा को माय ने बिगारि दियो कइस
दुइ बच्चन को बाप ह्वै छटूलो बनो जात है !
का कहै मरद जात कहै खिसियाय जात ,
आपुनी जो बात होय मिरची लगि जात है !
*
पेट नाहीं भरत तो कहूँ मन कहाँ ते लगे
भइया के बुलाये जबै मैके चली जात है ,
देख लेओ ढंग हम अभै दिखलाय देत
अम्माँ के सामैं और सिर चढ़ि जात हैं
*
मारे जल्दी के गरम चाय में मूँ डाल दियो
सासू देख लीन मुस्काति है बहुरिया
कइस चाय दई वाको मुँहै मार जरौ जाय ,
पलेट में उँडेल ठंडाय दे बहुरिया !
*
पियाला की चहा तो पलेट में उँडेल दई ,
भागि आई उहाँ ते तुरंत सासु यू न कहें ,
फूँक मार-मार के पियाय दे बहुरिया !

हमको तो दफ़तर जाये का देर होइ जाई ,
अभै तो नहाय का है .काहे ना नहात हो ?
काहे से कि गमछा किसउ ने कहूँ डारि दियो ,
तुरत ना पोंछे हमका ठंडी लगि जात हौ !

गमछा तो लाय के थमाय दीजो बाद में
पहिल ताता पानी पहुँचाय दे बहुरिया ।
*
गमछा थमाय भागि आई कहूँ कहि न दें ,
साबुन लगाय अन्हबाय दे बहुरिया ।

बड़ी देर लागि तहाँ झांकेउ न कहें न कहूँ
उहका तेल-बुकवा लगाय दे बहुरिया !
एतन में कान सुन्यो हमरी बुस्सट्ट कहाँ
दौरि घबराय धरि दीन्ह और भागि आये

कहूँ सास बोलि उठें हमका तो जोर परी
बटन खोलि वाको पहिराय दे बहुरिया !
*
थारी खाना दियो आपै खालिंगे बैठि
हम तो दूर बैठि के अगोरत रसुइया ,
दार में नोन थोरो फीको है ,हम लाय दियो
दारि देउ नेक तुहै हमरी कटुरिया
हम समुझायो हमका कइस अंजाद परी
या को सबाद तुम्हें आपुनो हिसाब करि
*
एतन में सासु माय बोलि परी काहे नाहिं
नेक नोन डरि के मिलाय दे बहुरिया !
चुटकी भर नोन डारि भागि आये झट्ट सानी
उनको का ठिकानो कहै  मो ही सो कहें लाग
कौर कौर करके खबाय दे बहुरिया !
*
मर्दुअन के संगे सनीमा देखि आये जौन
मोर पूत हाय मार कैसो थकाइ गा ,
आँखिन में नींद भरी कैसी झुकाय रहीं .
जाके तू बिछौना बिछाय दे बहुरिया !
चट्ट पट्ट भागि आई सासु माँ इहै न कहैं
लोरी गाय-गाय के सुबाय दे बहुरिया
*
ई लिख ततैया केर छत्ता में हाथ दियो
देखि लीजो दौरि-दौरि आय डंक मरिहैं
बिलैया के जैसे खिसियाय नोचें खंबन का,
लरिकन का जत्था खौखियाय दौरि परिहै ,

लिखि कै धर्यो है ,दिखावन की हिम्मत नाहिं,
जाही से परकासन की गुस्ताखी नाहीं करिहौं
केहू के चिढ़ाबो नाहीं ,थोरो सो विनोदभाव
नाहीं आच्छेप मैं साखी दै कहत हौं
*
काटन को दौरि जनि परे इहां पुरुस वृंद
तासे पहिले ही हौं तो माफ़ी मांगि लैत हों !
लंबी है गाथा सासु-माँ तुम्हार पुत्तर की
आगे कबहुँ कहिवे आज चुप्पै रहि लेत हौं !
*

3 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

शानदार और मनमोहक।

Himanshu Pandey ने कहा…

मनरंजक फुदकती-सी अभिव्यक्ति ।
"लंबी है गाथा सासु-माँ तुम्हार पुत्तर की
आगे कबहुँ कहिवे आज चुप्पै रहि लेत हौं ! "-- वाह !

Taru ने कहा…

वाह! कित्ती प्यारी रचना है.....बहुत बहुत मीठी.....ek muskaan hnthon par bani rahi ...ant tak......:)

ये वाली पंक्ति बहुत प्यारी थी...एकदम घुल गयी ज़ेहन में.......:)

''कौर कौर करके खबाय दे बहुरिया !''

कित्ता प्यारा रिश्ता उभर के आया इसमें सास और बहू का....:) इसे कोई गाके सुनाये अगर तो मैं छोटी बच्ची के जैसे ताली बजा बजा के सुनूंगी...:)

aapke shabdon ne kisi bhaav ko nahin chhoda na Pratibha ji...vivdhta hai bahut...aapki rachnan mein....:)

ढेर सारी बधाई इस गीत के लिए...:)