बुधवार, 14 अक्तूबर 2009

बालापन की जोरी-

तुम्हरे बालापन की जोरी ,
रुकमिन बूझति सिरी कृष्ण सों कहाँ गोप की छोरी ?'
'उत देखो उत सागर तीरे नील वसन तन गोरी ,
सो बृसभान किसोरी !'
सूरज ग्रहन न्हाय आए तीरथ प्रभास ब्रिजवासी ,
देखत पुरी स्याम सुन्दर की विस्मित भरि भरि आँखी!
'इहै अहीरन करत रही पिय तोर खिलौना चोरी ?'
हँसे कृष्ण ,'हौं झूठ लगावत रह्यो मातु सों खोरी !
एही मिस घर आय राधिका मोसों रार मचावे ।
मैया मोको बरजै ओहि का हथ पकरि बैठावे ।'
उतरि भवन सों चली रुकमिनी ,राधा सों मिलि भेंटी ,
करि मनुहार न्योति आई अपुनो अभिमान समेटी !
महलन की संपदा देखि चकराय जायगी ग्वारी
मणि पाटंबर रानिन के लखि सहमि जाइ ब्रजबारी !
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ऐते आकुल व्यस्त न देख्यो पुर अरु पौर सँवारन ,
पल-पल नव परबंध करत माधव राधा के कारन ! !
'मणि के दीप जनि धर्यो ,चाँदनी रात ओहि अति भावै ,
तुलसीगंध ,तमाल कदंब दिखे बिन नींद न आवै !
बिदा भेंट ओहिका न समर्पयो मणि,मुकता ,पाटंबर ,
नील-पीत वसनन वनमाला दीज्यो बिना अडंबर !
राधा को गोरस भावत है काँसे केर, कटोरा ,
सोवन की बेला पठवाय दीजियो भरको थोरा !'
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अंतर में अभिमान, विकलता कहि न सकै मन खोली
निसि पति के पग निरखि रुकमिनी कछु तीखी हुइ बोली ,
'पुरी घुमावत रहे पयादे पाँय ,बिना पग-त्रानन ,
हाय, हाय झुलसाय गये पग ऐते गहरे छालन ?'
'काहे को रुकमिनी ,अरे ,तुम कस अइसो करि पायो ?
ऐत्तो तातो दूध तुहै राधा को जाय पियायो ?
दासी-दास रतन वैभव पटरानी सबै तुम्हारो ,
उहि के अपुनो बच्यो कौन बस एक बाँसुरी वारो !
एही रकत भरे पाँयन ते करिहौं दौरा -दौरी
रनिवासन की जरन कबहूँ जिन जाने भानुकिसोरी !'
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खिन्न स्याम बरसन भूली बाँसुरिया जाय निकारी,
उपवन में तमाल तरु तर जा बैठेन कुंज-बिहारी /!
बरसन बाद बजी मुरली राधिका चैन सों सोई
आपुन रंग महल में वाही धुन सुनि रुकमिनि रोई !
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रह-रह सारी रात वेनु-धुन ,रस बरसत स्रवनन में ,
कोउ न जान्यो जगत स्याम निसि काटी कुंज-भवन में !
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