बुधवार, 28 अक्तूबर 2009

का कर लेई काजी

मोहे टी.वी. मँगाय दे मैं टिविया पे राजी !
जा पै होइ रँगवारो टीवी करौं ओही से सादी !
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काला और सुपेद न भावै ,टीवी बस रंगवारो ,
बिना रँगन को मजा न आवे तुमहू नेक विचारो !
छैल-छबीली फर्वट छोरी दो करवाय मुनादी
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मरद चलेगा लंबा-नाटा काला-गोरा कोई,
मोटा पातर,मूँछ-निमूछा फरक पड़े ना कोई !
दिन भर बाहर रहै मरद ,रौनक टीवी से हाँ ,जी !
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बंदर जैसा हो कोई , जा की महरारू सुन्दर ,
हर देखैवाले के हिय मां हूक उठै रह रह कर !
सरत लगा ले कोई चाहे ,हौं ही जितिहौं बाजी !
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पढ़ी-लिखी तो नहीं खास पर समझूँ ढाई आखर ,
उइसे ही सब कहें सयानी ,का होई पोथी पढ़
ज्यादा पढी-लिखी छोरी तो लगे सभी की दादी !
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जइस खुदा जी खुदै देत सक्कर खोरेन का सक्कर ,
हमरा भी हुइ जाई कलर टीवी वाले सों चक्कर
टी.वी.वाला राजी तो फिन का कर लेई काजी !

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