रविवार, 18 अक्तूबर 2009

बलम सिसकी दै-दै रोवैं !

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सावन की तीजन को
भइया लिवाय गयो ,
धनि चली गइली प्योसार !
बलम सिसकी दै-दै रोवैं !
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गद्दन पे लोटैं, दुलयइन सों लिपटें ,
तकियन पे मूड़ दै-दै मारैं !
रात भई, सँवरी न सेजिया ,
घिरे बदरा अँधियारे !
बापुरो मनई कइस सोवैं !
बलम सिसकी दै-दै रोवैं !
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सावन महीना तो दुसमन हमायो,
गरजै बरसिबे का इहै ठौर पायो !
आयो जो भैया चली गई उतावल
सारो(साला) भा बैरी हमार !
बलम सिसकी दै-दै रोवैं !
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काटन को दउरे रसुइया की देहरी ,
चहा क पियाला देखतई जूड़ी (बुख़ार),
खावे न पीवै ,करै का बिचारो ,
अब को सँभारनहार !
बलम सिसकी दै-दै रोवैं !
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बेलन हू नाचे जो हाथ लेइ जुइया,
चुरियन के राग नचै रोटी की लुइया !
हालै न डोले ,,दिखाइ जोर हारि गये ,
चिपक्यो अँगुरियन पे मार !
बलम सिसकी दै-दै रोवैं !
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मूड़े डारि लीनों वाकी चूनर को अँचरा ,
खनखन बजावैं वाकी चुरियन की झलरा ,
बस में न आव एक आटे को लोंदा
जरि गई, पानी बिनु दार(दाल) !
बलम सिसकी दै-दै रोवैं !
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अईना पे माथे की बेंदी लगाय गई ,
सीसा के कौंधा में सूरत छिपाय गई !
आपुन मुखौटा गुमाय गयो, सूझै ना ,
उहै दीख जात बार - बार !
बलम सिसकी दै-दै रोवैं !

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