बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

नचारी - गौरा का सुहाग

गौरा का सुहाग -
नैना भरे माई दिहिले , सुहाग भर भर हंडा ,
एतन सुहाग गौरा पाइन धूम भइल तिहुँ खण्डा !
मारग में सगरी मेहरियाँ दौरि आवन लगलीं ,
गौरा के चरनन लगलीं सुहाग पावन लगलीं !ओ

खेतन ते भागी, पनघट ते भगि आई ,घाटन से दउरी धुबिनियाँ ,
गोरस बहिल ,ऐसी लुढकी मटकिया तौ हूँ न रुकली गुजरिया ,
दौरी भडभूजी ,मालिन ,कुम्हारिन , बढनी को फेंक कामवारी
गौरा लुटाइन सुहाग दोउ हाथन ,लूटेल जगत के नारी ।
ऊँची अटारिन खबर भइली , पहरे -ओढे लागीं घरनियाँ ,
करिके सिंगार घर आंगन अगोरे तक बचली फकत एक हँडिया ।
चुटकि-चुटकि गौरा उनहिन को दिहला ,एतना रे भाग तुम्हारा ,
दौरि दौरि , लूटि लूटि लै गईं लुगइयां ,जिनके सिंगार न पटारा !
एही चुटकिया जनम भर अगोरो ,मँहगा सुहाग का सिंदुरवा ,
तन मन में पूरो, अइसल सँवारो रंग जाये सारी उमरिया !

भुरजी ,कुम्हरिन से जाँचित चुटकि भर, कन्या सुहाग भाग मांगे ,
गौरा की किरपा भइल कमहारिन पे जिन केर सुहाग नित जागे !

गौरा का सेंदुर अजर अमर भइला ,उन जैसी कौ बडभागिन रे ,
इनही से पाये सुहाग, सुख, दूध, पूत ,तीनिउँ जगत की वासिन रे ।

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