रविवार, 18 अक्तूबर 2009

भइया-दूज!

मोरे बीरन का उज्जल माथा ,
रोली का टीका ,अक्षत का आँका !
मुख में धऱूँगी मोहन-मिठाई ,
आई रे, भइयादूज !
*
आरति कर ,ओहिका मुखड़ा निहारूँ ,
मुतियन की मुट्ठी भर-भऱ वारूँ !
जब देखूँ हँसता ही पाऊँ ,
सुख कितना मत पूछ !
*
लाख बरिस जीवै मोरा भइया !
मैं तो चाहूँ बस प्यार की छइयाँ
तेरा सुजस जग करे उजागर ,
मैं तेरे अँगना की दूब !
*

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