मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

मेरी जोत ना धुँधुआय !

पीछे छूटि गई सारी भीर-भार !
अब तो उतरि गो सैलाब ,
जी में काहे की हरास ,
लै जात नहीं केऊ का उधार !
*
सँवारि दये बच्चा,
निभाइ दियो कुनबा ,
अब बार फँसे चाँदी के तार !
*
झेली छाँह-धूप सारी ,
राह पूरी करि डारी ,
थोरो बच्यो सो भी होय जाई पार !
*
सही लागे सोई करिबे ,
आपुन सिर उठाय जीबै !
केऊ और से लगइबे ना गुहार !
*
मोरे आपुने हैं सारे
कोई बूढ़ कोई बारे ,
बाँट लेई सारो दुख सुख सबार !
*
जौ लौं जियैये राम ,
खाली बैठिबो हराम,
ना केऊ की दया की दरकार !
*
दीन नाहीं हुइबे ,
मलीन नाहीं हुइबे ,
कुछु जादा नहीं चाहिबो हमार !
*
कोऊ पछितावा नहीं ,
अँसुअन की भाखा नहीं,
विरथा नाहीं गयो जीवन हमार !
*
आपुन पावनो लै लीन्हों,
हुइ पायो सो कर दीन्हो !
अब तो सामने ही होई लिखवार !
*
मोरी जोत ना धुँधुआय,
पूरी भभके औ बुझि जाय !
प्रभु से ऐही बस विनती हमार
*

1 टिप्पणी:

Taru ने कहा…

poori kavita pravaah may hai.....aur bhasha hriday ke behad kareeb...

मोरी जोत ना धुँधुआय,
पूरी भभके औ बुझि जाय !
प्रभु से ऐही बस विनती हमार

bahut hi achi panktiyaan....choonki m a Dr by profession....bahut se bujurgon ko dekha hai hospital mein....aapki in lines se sabka chehra ankhon k aage ghoom gaya ...sach mein kisi ki jyot na dhundhlaaye...bhabhke aur bhujh jaaye........

jab bhi ghar ke mandir mein diya jalaungi ye teen panktiyaan yaad aayengi..:)

bahut bahut badhayi uttam lekhan k liye...ishwar aapki lehni aur hriday mein sada vaas karein.......:)